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(३१) इच्छापूर्ति का नियम
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नहीं। दो वर्षों, पाँच वर्षों में भी मिलेगी। तीव्र इच्छा स्वयं कहती है कि वह पूरी होने ही वाली है। मोक्ष जानेवाले की सभी इच्छाएँ पूरी हों, तभी मोक्ष में जाया जा सकता है।
इच्छा, उसके प्रत्याख्यान आप सभी को अंदर जाँच करनी है कि कौन-कौन सी इच्छाएँ रह गई हैं? पहले पूछना कि, 'सिनेमा देखने की इच्छा है?' तो 'नहीं' कहेगा। फिर दूसरा पूछना, तीसरा पूछना, अंदर से जवाब मिलेगा। सुबह उठते ही पाँच बार सच्चे दिल से बोलना, 'इस जगत् की कोई भी विनाशी चीज़ मुझे नहीं चाहिए।' इतना बोलकर चलना चाहिए, उसके उपरांत भी इच्छा हो तो तुरन्त ही प्रत्याख्यान कर लेना। इच्छा नहीं, फिर भी इच्छा हो जाए, प्लस हो जाए तो इस तरह माइनस कर देना चाहिए। फिर जोखिमदारी नहीं
(३२) टी.वी. की आदतें
...फिर महत्व किसका? दादाश्री : रविवार को आपके नज़दीक ही सत्संग होता है तो क्यों नहीं आते हो?
प्रश्नकर्ता : रविवार को टी.वी. देखना होता है न दादा!
रहेगी।
दादाश्री : टी.वी, का और आपका क्या संबंध? ये चश्मे लग गए हैं तो भी टी.वी. देखते हो? हमारा देश ऐसा है कि टी.वी. नहीं देखना पड़े, नाटक नहीं देखना पड़े, इधर सबकुछ यहीं के यहीं रास्ते पर ही होता रहता है न?
प्रश्नकर्ता : अंदर आशा-निराशा क्यों आती है?
दादाश्री : आशा-निराशा, इच्छाएँ देह का धर्म हैं। वह उसका धर्म पालन करती ही रहती है। आत्मा को कोई इच्छा है? आत्मा को इच्छा हो तब तो आत्मा भिखारी हो गया कहलाएगा। आत्मा प्राप्त होने के बाद जो-जो इच्छाएँ होती हुई लगती हैं, वे सभी डिस्चार्ज इच्छाएँ हैं, वे निकाली इच्छाएँ हैं। 'चार्ज' इच्छा वह बंधन है।
प्रश्नकर्ता : इच्छा चार्ज हुई कब कहलाती है? दादाश्री : 'मैं चंदूलाल हूँ' वह पक्का है आपको? प्रश्नकर्ता : नहीं।
दादाश्री : तो फिर कर्ता के बिना किस तरह कर्म बंधेगे? 'मैं चंदूलाल हूँ' वह अज्ञान है और अज्ञान से कर्त्तापद है। अज्ञान गया कि कर्त्तापद खत्म हुआ। फिर 'चार्ज' नहीं होता। सिर्फ डिस्चार्ज ही रहता है।
प्रश्नकर्ता : उस रास्ते पर पहुँचूँगा तब बंद होगा न?
दादाश्री : कृष्ण भगवान गीता में यही कह गए हैं कि मनुष्य अनर्थ टाइम बिगाड़ रहे हैं। खाने के लिए, नौकरी पर जाते हैं, वह तो कोई अनर्थपूर्वक नहीं कहलाता। जब तक आत्मिक दृष्टि नहीं मिलती, तब तक यह दृष्टि छूटती नहीं है न?
लोग शरीर पर बदबूवाला कीचड़ कब चुपड़ते हैं? उन्हें जलन होती है तब। वैसे ही यह टी.वी., सिनेमा, सबकुछ बदबूदार कीचड़ कहलाता है। उसमें से कोई सार नहीं निकलता। हमें टी.वी. से कोई परेशानी नहीं है। हर एक चीज़ देखने की छूट होती है, परन्तु एक ओर पाँच बजकर दस मिनिट पर टी.वी. (प्रोग्राम) हो और एक ओर पाँच बजकर दस मिनिट पर सत्संग हो, तो क्या पसंद आएगा? ग्यारह बजे परीक्षा हो और ग्यारह