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________________ (२५) I & My २०३ २०४ आप्तवाणी-४ ताकि आत्मवत् सर्वभूतेषु दिखे। 'ज्ञानी' ही मौलिक स्पष्टीकरण दें 'I' और 'My' के बीच में Demarcation line (भेदरेखा) तो डालनी पड़ेगी न? एक Spiritual adjustment (आध्यात्मिक एडजस्टमेन्ट) और दूसरा Mechanical adjustment (भौतिक एडजस्टमेन्ट), ऐसे दोनों अलग-अलग करने पड़ेंगे। नहीं तो अपना देश कौन-सा और विदेश कौनसा उसका किस तरह पता चलेगा? यह Line of demarcation नहीं डाली, इसीलिए तो रोज़ के झगड़े होते रहते हैं। मालिकीभाव है। फ़ॉरेन के लोग पुनर्जन्म ढूंढते फिरते हैं। उन्हें मैं कहता हूँ कि इसके बदले में 'I' और 'My' seperate हैं ऐसा ढूंढ निकालो न! My birth और My death कहते हैं न? और ट्रेन में भी My berth (मेरी जगह) कहते हैं न?(!) व्यवहार में 'My' बोला जाता है, परन्तु वह ड्रामेटिक होना चाहिए। 'T' को निकालकर बोलना चाहिए। 'My' भोगने के लिए है, परन्तु reinvite (वापिस बुलाने) के लिए नहीं है। Complete happiness belongs to 'T' without My'. (संपूर्ण सुख बगैर ‘मेरे 'वाले 'मैं' में है।) 'My'is complete mechanical. 'I' is not mechanical. 'I' is absolute. ('मेरा' पूर्णतः भौतिक है। 'मैं' भौतिक नहीं है। 'मैं' केवलज्ञान स्थिति है।) 'My' को कुदरत सभी मदद देती है। इसलिए 'My' में हाथ मत डालना। सिर्फ देखते ही रहना। मशीन को तेल, पानी, वाय, मिलती ही रहेगी। और फिर टेस्टफुल मिलेगा, 'फ्री ऑफ कॉस्ट' मिलेगा। संसार में अपने 'I' का वजन 'My' खा जाता है, ''का पाँच पाउन्ड और 'My' का लाख पाउन्ड हो गया है। 'My' का वजन यदि कम हो तब 'I' का वजन बढ़ेगा। ___ 'I' भगवान है और 'My' माया है। 'My' वह माया है। 'My' is relative to 'I'.'T' is real. आत्मा के गुणों का इस '1' में आरोपण करो, तब भी आपकी शक्तियाँ बहुत बढ़ जाएँगी। मूल आत्मा ज्ञानी के बिना नहीं मिल सकता। परन्तु ये 'I' and 'My' are complete seperate. ऐसा सभी को, फ़ॉरेन के लोगों को भी यदि समझ में आ जाए तो उनकी परेशानियाँ बहुत कम हो जाएँगी। यह बात फ़ॉरेन के साइन्टिस्टों को जल्दी समझ में आ जाएगी। यह साइन्स है। अक्रम विज्ञान की यह आध्यात्मिक research का बिल्कुल नया ही तरीका है। 'I' and 'My' बिल्कुल अलग ही है। 'I' वह स्वायत्त भाव है और 'My' वह
SR No.009576
Book TitleAptavani 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages191
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size50 KB
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