SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 125
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (२३) मोक्ष प्राप्ति, ध्येय १९३ १९४ आप्तवाणी-४ उसका भान होना चाहिए। __ मात्र मोक्ष का ही नियाणां प्रश्नकर्ता : आप वह समझाइए। वह भान करने की इच्छा जागृत हुई है, इसलिए यहाँ पर आएँ हैं। दादाश्री : वह ज्ञान प्राप्त करने की जन्मोजन्म से इच्छा होती है, पर उसके लिए सच्चा नियाणां (अपना सारा पुण्य लगाकर किसी एक वस्तु की कामना करना) नहीं किया। यदि सच्चा नियाणां किया होगा तो सारा ही पुण्य उसमें ही खर्च हो जाएगा और वह वस्तु मिलेगी ही। नियाणां का स्वभाव क्या है कि आपका जितना पुण्य हो, वह नियाणां के लिए खर्च हो जाता है। तो आपका कितना पुण्य घर में खर्च हुआ, देह में खर्च हुआ, मोटर-बंगला, पत्नी-बच्चों के सुख में खर्च हो गया है। हम मात्र मोक्ष का ही नियाणां लेकर आए हैं, इसलिए सब सीधा चल रहा है। हमें कोई अड़चन नहीं आती। नियाणां का अर्थ क्या कि एक ही ध्येय हो कि ऐसा ही चाहिए, दूसरा कुछ नहीं! नियाणां तो मोक्ष में जाने के लिए ही करने जैसा है। ध्येय तो शुद्धात्मा का और नियाणां सिर्फ मोक्ष का। बस और कुछ भी नहीं होना चाहिए। अब तो बीड़ा उठाना है, दृढ़ निश्चय रखना है कि मोक्ष में ही जाना है। वह एक ही नियाणां करना, ताकि अधिक जन्म नहीं हों। एक-दो जन्मों में छूटा जा सके। यह संसार तो जंजाल है सारा! जगह पर नहीं जाना है। सर्वदुःखों से मुक्ति, वह पहला मोक्ष है और फिर संसार से मुक्ति, वह दूसरा मोक्ष! पहला मोक्ष हो जाए, तब दूसरा मोक्ष सामने आएगा। पहली मुक्ति 'कॉज़ेज़' के रूप में है और दूसरी 'इफेक्ट' के रूप में है। कॉजेज से मुक्ति हो जाने के बाद फिर बच्चों की शादी करवा सकते हैं, सबकुछ हो सकता है, उसमें भी मुक्तभाव होता है और इफेक्ट-मोक्ष अभी हो सके वैसा नहीं है। कॉजेज मोक्ष में मैं खुद रहता हूँ और सभी कार्य होते हैं। जिस देह से मुक्तता का भान हो जाए. उसके बाद एकाध देह धारण करना बाकी रहता है। कठिन, मोक्षमार्ग या संसारमार्ग? मोक्षमार्ग कठिन नहीं होता. संसारमार्ग कठिन होता है। एक बड़ा टेन्क भरकर पानी उबालना हो तो उसमें कितनी-कितनी वस्तुओं की जरूरत पड़ेगी? उसे उबालने में कितनी मेहनत लगेगी? और उसे वापिस ठंडा करना हो तो क्या करना चाहिए? अब वहाँ विकल्प करे कि, 'किस तरह ठंडा होगा' तो? हम ज्ञानी हों तब उससे कहें कि, 'आँच बुझाकर आराम से सो जा।' वह सोचे कि पानी को गरम करने में इतना समय लगा, वह किस तरह जल्दी से ठंडा होगा? परन्तु पानी का स्वभाव ही ठंडा है, इसलिए अपने आप ठंडा हो जाएगा। पानी को गरम करना अर्थात उसे संसार स्वभाव में लाना। 'स्वयं' खुद के स्वभाव में आना, वह मोक्ष कहलाता है और विभाव में जाना वह संसार कहलाता है। यह भेदज्ञान करवाने के लिए ज्ञानी मिलने चाहिए, तभी काम होगा। नहीं तो करोड़ों जन्मों तक भी ठिकाना पड़े ऐसा नहीं है। सच्चा मुमुक्षु कैसा होता है? शास्त्रकारों ने साफ-साफ कहा है कि मुमुक्षु महात्मा तुरन्त 'ज्ञानी पुरुष' को पहचान ले, तभी वह सच्चा ममक्ष है। जिसे केवल मोक्ष की ही इच्छा है, उसे तो तुरन्त मोक्षदाता 'ज्ञानी पुरुष' की पहचान हो जाती है। परन्तु जिसे और कुछ इच्छाएँ हैं, मान की, कीर्ति की, शिष्यों की, उससे मोक्ष, स्थान या स्थिति? प्रश्नकर्ता : लेकिन मुझे यह जानना था कि मोक्ष, जाने की वस्तु है, प्राप्त करने की वस्तु है या मोक्ष कोई स्थिति है? दादाश्री : मोक्ष तो स्वभाव ही है खुद का। आपका स्वभाव ही मोक्ष है, परन्तु स्वभाव प्राप्त करने के लिए कुछ उपाय करना पड़ेगा न? आप हो मोक्ष स्वरूप, परन्तु अभी आप मोक्षसुख नहीं भोग सकते हो, क्योंकि उसका आपको भान नहीं है। मोक्ष के लिए आपको कहीं किसी
SR No.009576
Book TitleAptavani 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages191
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size50 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy