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आप्तवाणी-४
(२३) मोक्ष प्राप्ति, ध्येय
मोक्ष, वह क्या है? प्रश्नकर्ता : मोक्ष या मुक्ति किसे कहते हैं?
दादाश्री : मोक्ष और मुक्ति नज़दीक के ही शब्द हैं। एक ही माँ के दो बच्चे हैं।
यदि सर्व कर्मों से मुक्ति चाहिए, पूरा मोक्ष चाहिए तो पहले अज्ञान से मुक्ति होनी चाहिए। यानी आप अज्ञान से ही बंधे हुए हो। यदि अज्ञान जाए तो सबकुछ सरल हो जाएगा, शांति हो जाएगी, दिनोंदिन आनंद बढ़ता जाएगा और कर्म से मुक्ति होती जाएगी।
मोक्ष अर्थात् हमें मुक्तता का भान होना चाहिए। मैं मुक्त हूँ' ऐसा भान जीते जी ही रहना चाहिए। मर जाने के बाद मोक्ष काम का नहीं है, वह तो धोखा देने की बात है। मोक्ष तो नक़द होना चाहिए, उधार नहीं चलेगा। सब्जी लेने किसीको भेजें तो भी अंदर से कमिशन निकाल ले, वैसा यह जमाना है, उसमें तो भला मोक्ष उधार लिया जाता होगा? वैसा उधार मोक्ष कोई दे तो हमें कह देना चाहिए कि 'अगले जन्म में मोक्ष', वैसा उधार मोक्ष मुझे नहीं चाहिए। इस समय में उधार धंधा करना ही मत। आज तो धर्म में भी मिलावट हो गई है। शुद्ध घी में वेजिटेबल घी की मिलावट का ज़माना गया, अब तो वेजिटेबल घी के अंदर भी मिलावट होती है ! कोई कहे कि, 'आपके क्रोध-मान-माया-लोभ निकाल दो।' तब हम कहें, 'साहब, वह तो मैं भी जानता हूँ, पर ऐसा कुछ कहिए कि जिससे मेरे क्रोध-मान-माया-लोभ चले जाएँ।' ऐसे ही चलाते रहें तो उसका क्या
अर्थ है? वचनबलवाले पुरुष के पास जाएँ, चारित्रबलवाले पुरुष के पास जाएँ तो क्रोध-मान-माया-लोभ को चले जाना पड़ेगा। कमजोर व्यक्ति की कमजोरियाँ उससे अपने आप से निकल सकती हों, तो फिर मज़बूत व्यक्ति का क्या काम है?
लोग धर्म का सुनने जाते हैं उसे श्रुतज्ञान कहते हैं। परन्तु श्रुतज्ञान तो वह कहलाता है कि उसे सुनने के बाद अपना रोग अपने आप ही निकल जाए।
मोक्षप्राप्ति का मार्ग प्रश्नकर्ता : मोक्ष किस तरह मिलता है?
दादाश्री : उसका तरीका नहीं होता। आर्तध्यान और रौद्रध्यान चले जाएँ तो मोक्ष मिलता है।
प्रश्नकर्ता : फिर भी मोक्ष प्राप्त करने का रास्ता क्या होता होगा? किसके पास से मोक्ष मिल सकेगा?
दादाश्री : मोक्ष तो सिर्फ 'ज्ञानी पुरुष' के पास से ही मिलता है। जो मुक्त हो गए हों वे ही आपको मुक्त कर सकते हैं। खुद बंधा हुआ दूसरे को किस तरह छड़वा सकेगा? यानी हमें जिस दुकान पर जाना हो उस दुकान पर जाने की छूट है, परन्तु वहाँ पर पूछना कि, 'साहब, मुझे मोक्ष देंगे?' तब वह कहे कि, 'नहीं, हमारी मोक्ष देने की तैयारी नहीं है।' तो हम दूसरी दुकान, तीसरी दुकान पर जाएँ। किसी जगह पर हमें ज़रूरत का माल मिल जाएगा, पर एक ही दुकान पर बैठे रहें तो? तो फिर टकराकर मर जाएँगे। अनंत जन्मों से ऐसे ही भटकते रहने का कारण ही यह है कि हम एक ही दुकान पर बैठे रहे हैं, खोजबीन भी नहीं की। 'यहाँ बैठने से हमें मुक्ति का अनुभव होता है या नहीं? अपने क्रोध-मान-माया-लोभ कम हुए?' वह भी नहीं देखा।
विवाह करना हो तो पता लगाता है कि कौन-सा कुल है, ननिहाल कहाँ है? सब 'रियलाइज' करता है। पर इसमें 'रियलाइज' नहीं करता।