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आप्तवाणी-४
ही ऐसा कह सकते हैं। हर एक जीव अनादि से है, परन्तु 'ज्ञानी' मिले और ज्ञान हो उसके बाद ही सादि-सांत (स-आदि, स-अंत) में आता
(२०) गुरु और ज्ञानी
यथार्थ गुरु प्रश्नकर्ता : मेरे पहले के गुरु हैं, तो यहाँ आपको गुरु बना सकता
प्रश्नकर्ता : तो फिर मोक्ष के मार्ग में गुरु की ज़रूरत है क्या?
दादाश्री : हाँ, कुछ कहते हैं न कि गुरु की ज़रूरत नहीं है! यह तो लाइट को बुझा देने जैसी बात है। गुरु तो प्रकाश है, परन्तु गुरु तो पहचान में आने चाहिए न? ये तो अँधेरे को प्रकाश मानते हैं तो किस तरह काम
हो?
'गुरु' तो, ये सब आचार्य-महाराज हैं न, वे गुरु कहलाते हैं। 'सद्गुरु', कौन? कि जिन्हें सत् प्राप्त हुआ है वे। जिन्हें सत् प्राप्त हुआ हो, वे तो हमने उल्टा किया हो फिर भी चिढ़ते नहीं हैं और 'ज्ञानी पुरुष' तो स्व-पुरुषार्थ सहित होते हैं। 'ज्ञानी पुरुष' तो वर्ल्ड के आश्चर्य कहलाते
दादाश्री : दो गुरु तो चाहिए ही। संसार के गुरु शुभाशुभ का सिखलाते हैं। और यहाँ तो शुभाशुभ से छुड़वाते हैं। वास्तव में ये गुरुपद ही नहीं है। यहाँ कोई बाधक वस्तु नहीं होती, साधक वस्तु ही होती है। संसार के गुरु तो चाहिए ही। उनके आशीर्वाद हों तो भौतिक सुखों के लिए बहुत काम आएगा। और यह तो अलौकिक वस्तु है! संसारी गुरु लौकिक गुरु कहलाते हैं।
प्रश्नकर्ता : लौकिक गुरु मतलब क्या?
प्रश्नकर्ता : 'ज्ञानी' को पहचानें किस तरह?
दादाश्री : अच्छा सिखलाएँ वे लौकिक गुरु। संसार का सिंचन इस भव में किस आधार पर होता है? जो योजना बन चुकी होती है, उस आधार पर। माँ-बाप अच्छे मिलते हैं, गढ़ाई के लिए साधन अच्छे मिलते हैं। सब लेकर ही आता है। 'ज्ञानी' की कृपा तो नि:शब्द होती है, मुँह पर नहीं कहते कि धनवान बनना या पुत्रवान बनना। परन्तु 'ज्ञानी' की कृपा से मोक्ष मिलता है!
दादाश्री : 'ज्ञानी' से कहना चाहिए कि, 'साहब, मेरा कुछ हल ला दीजिए। तब यदि वे ऐसा कहें कि 'इतना करके लाओ।' तब आप कहना कि, 'साहब, इतने समय तक किया ही है तो भी अंत नहीं आया।' इस छोटे बच्चे को कहीं भेजें तो कुछ करेगा क्या? वह तो बड़े को ही करना पड़ेगा। वैसे ही 'ज्ञानी पुरुष' मिलें, तो उनके पास से सीधा ही माँग लेना होता है। संसार में से मुक्ति दिलवाएँ वे गुरु सच्चे! बाकी दूसरे सब गुरु तो बहुत से होते हैं, वे किस काम के? वह तो यहाँ से स्टेशन तक जाना हो तो भी रास्ते का गुरु बनाना पड़ता है।
प्रश्नकर्ता : हर एक को मोक्ष मिलने ही वाला है, तो फिर 'ज्ञानी' की क्या जरूरत है?
दादाश्री : सेन्ट्रल स्टेशन आएगा ही, परन्तु स्टेशन आने के बाद
लौकिक गुरु लौकिक गुरु भले ही ज्ञानी नहीं हैं, परन्तु वे 'कौन हैं' वह मालूम है? वे रेल्वे के 'पोइन्टमेन' जैसे हैं। गाडी दिल्ली की हो उसे पोइन्ट मिलवा देता है और गाड़ी को दिल्ली की पटरी पर मोड़ देता है। आज तो दिल्ली