________________
IITHILI
आप्तवाणी, कैसी क्रियाकारी!
यह'ज्ञानी पुरुष की वाणी है और फिर ताजी है। वर्तमान पर्याय हैं इसलिए उन्हें पढ़ते ही हमारे सभी पर्याय बदलते जाते हैं और वैसे-वैसे आनंद उत्पन्न होता जाता है। ऐसे करते-करते यों ही समकित हो जाए किसीको! क्योंकि यह वीतरागी वाणी है। राग-द्वेष रहित वाणी हो तो काम होता है, नहीं तो काम नहीं होता। महावीर भगवान की वीतराग वाणी थी, उसका असर आज तक हो रहा है, २५०० वर्ष हए फिर भी उसका असर होता है, तो ज्ञानी पुरुष' की वाणी का भी असर होता है, दो चार पीढ़ियों तक तो होता ही है।
वीतराग वाणी के अलावा दूसरा कोई उपाय नहीं है, मोक्ष में जाने के लिए।
-दादाश्री
S
आत्मविज्ञानी ए. एम. पटेल' के भीतर प्रकट हुए दादा भगवानना
असीम
जय जयकार हो
।
ISBN 978-81-89933-73-9
आप्तवाणी श्रेणी-४
97881890933739
Printed in India
Price: