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'ये आप्तवाणियाँ एक से आठ छप गई हैं। दूसरी चौदह तक तैयार होनेवाली हैं, चौदह भाग। ये आप्तवाणियाँ हिन्दी में छप जाएँ तो सारे हिन्दुस्तान में फैल जाएँ । '
आप्तवाणियों के हिन्दी अनुवाद के लिए परम पूज्य दादाश्री की भावना
- दादाश्री
परम पूज्य दादा भगवान (दादाश्री) के श्रीमुख से आज से पचीस साल पहले निकली इस भावना फलित होने की यह शुरूआत है और आज आप्तवाणी - १ का हिन्दी अनुवाद आपके हाथों में है । भविष्य में और भी आप्तवाणीओं तथा ग्रंथो का हिन्दी अनुवाद उपलब्ध होगा उसी भावना के साथ जय सच्चिदानंद ।
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पाठकों से.....
'आप्तवाणी' में मुद्रित पाठ्यसामग्री मूलत: गुजराती 'आप्तवाणी' श्रेणी - १ का हिन्दी रुपांतर है।
इस 'आप्तवाणी' में 'आत्मा' शब्द को संस्कृत और गुजराती भाषा की तरह पुल्लिंग में प्रयोग किया गया है।
जहाँ जहाँ पर चंदूलाल नाम का प्रयोग किया गया है, वहाँ वहाँ पर
पाठक स्वयं का नाम समझकर पठन करें।
'आप्तवाणी' में अगर कोई बात आप समझ न पायें तो प्रत्यक्ष सत्संग में पधार कर समाधान प्राप्त करें।
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संपादकीय
सर्वज्ञ 'दादा भगवान' की प्रकट सरस्वती स्वरूप, वाणी का यहाँ संकलन किया गया है।
जिनके सुचरणों में काल, कर्म और माया स्थिर हो जाएँ, ऐसे परमात्मा स्वरूप ज्ञानी पुरुष की हृदयस्पर्शी प्रकट वाणी ने कई लोगों को दिव्य चक्षु प्रदान किए हैं। आशा है कि जो कोई इस महाग्रंथ का, 'सत्य जानने की कामना' से पठन करेगा उसे अवश्य ही दिव्यचक्षु की प्राप्ति हो, ऐसा है, बशर्त उसके अंदर ऐसी दृढ़ भावना हो कि मुझे केवल 'परम सत्य' ही जानना है, और कुछ नहीं जानना । यदि दूसरा कुछ जानने की जरा-सी भी गुप्त आकांक्षा रही तो उसका कारण मताग्रह ही होगा। 'परम सत्य' जानने की एकमेव तमन्ना और मताग्रह ये दोनों विरोधाभास है। आग्रह और मतमतांतर के द्वारा कभी मुक्ति या मोक्ष संभव नहीं है। पूर्ण रूप से निराग्रही, निष्पक्षपात होने पर ही कार्य सफल होगा। मोक्ष तो ज्ञानी पुरुष के चरणों में ही है। ऐसे मोक्षदाता ज्ञानी पुरुष की यदि पहचान हो जाए, उनसे तार जुड़ जाए तो नकद मोक्ष हाथों में आ जाए। ऐसा नक़द मोक्ष अनेक लोगों ने प्राप्त किया है और वह भी केवल एक ही घंटे में ! मानने में नहीं आए, पहले कभी सुनने में नहीं आई हो ऐसी अभूतपूर्व बात है यह, फिर भी अनुभव की गई हक़ीक़त है !
मोक्ष अति अति सुलभ है, पर ज्ञानी पुरुष की भेंट होना अतिअति दुर्लभ है । भेंट होने पर उनकी पहचान होना, तो अति अति सौ बार दुर्लभ, दुर्लभ, दुर्लभ है।
परम सत्य जानने की कामना रखनेवाले के लिए ज्ञानी पुरुष का वर्णन, उनकी पहचान हेतु बहुत ही उपयोगी सिद्ध होता है। ज्ञानी पुरुष की पहचान कैसे करें? उन्हें कैसे पहचानें?
ज्ञानी पुरुष की पहचान केवल उनकी वीतराग वाणी के द्वारा संभव है। अन्य कोई साधन इस काल में नहीं है। प्रचीन काल के लोग आध्यात्मिक रूप से इतने विकसित थे कि ज्ञानी की आँखें देखकर ही
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