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आप्तवाणी - १
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भगवान और सत्पुरुष के सत्संग का मोह है, वह प्रशस्तमोह और प्रशस्तमोह से मोक्ष |
मोह के तो अनंत प्रकार हैं। उनका कोई अंत आनेवाला नहीं है। एक मोह छोड़ने को लाख जन्म करने पड़ें, ऐसा है। मनुष्यपन तो मोक्ष का संग्रहस्थान ही है। 'स्वरूप ज्ञान के बिना मोह जाए ऐसा नहीं है ।'
माया
प्रश्नकर्ता माया के बंधन में से मुक्त होने को क्या करें?
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दादाश्री : अज्ञान ही माया है। खुद के निज स्वरूप का अज्ञान ही माया है और वह माया तो मूढ़ मार मारती है। इस संसार में कोई हमारे ऊपर है ही नहीं। माया के कारण कोई ऊपर है, ऐसा लगता है।
माया क्या है? भगवान का रिलेटिव रूप, वही माया है। यह माया फँसाती है ऐसा लोग बोलते हैं, वह क्या है? यह सब कौन चलाता है ? यह वह जानता नहीं है, इसलिए 'मैं चलाता हूँ' ऐसा मानता है। यही माया है और उसमें फँसता है।
इस संसार में यदि कोई कच्ची माया नहीं है, तो वे भगवान हैं। कच्चे सभी मार ही खाते हैं, भगवान की माया की ही तो! यह मार अनहद है या बेहद है, यह कहा नहीं जा सकता, पर वह मार ही मोक्ष में जाने की प्रेरणा देगी।
खुद, खुद को जानता नहीं है। यही सबसे बड़ी माया है। अज्ञान गया कि माया गई ।
जहाँ जो वस्तु नहीं है, वहाँ उस वस्तु का विकल्प होता है, उसका ही नाम माया।
हमारी उपस्थिति में आपकी माया टिकती नहीं, बाहर ही खड़ी
आप्तवाणी - १
रहती है। आप हमारी उपस्थिति में से बाहर निकलेंगे, तो आपकी माया अपने आप आ लिपटेगी। हाँ, हमारे पास से एक बार स्वरूप ज्ञान ले जाओ, फिर आप चाहे जहाँ जाओ, फिर भी माया आपको छूएगी ही नहीं ।
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भगवान कहते हैं कि यह सब नाटकीय है। तू उसमें नाटकीय मत हो जाना। मूल मन का झमेला है, इसलिए लोग मन के पीछे लगे हैं, पर मन परेशान नहीं करता है। उसके पीछे माया है, वह परेशान करती है। माया जाए, तो मन तो सुंदर एन्डलेस फिल्म है। कुछ लोगों ने सांसारिक माया छोड़कर त्यागी बनना स्वीकार किया, तो क्या उनकी माया चली गई? नहीं, उलटे दुगुनी माया लिपटी हुई है। माया छोड़ी किसे कहेंगे ? संसार वैभव भोगना छोड़ें, उसका नाम माया छोड़ी। यह तो बीवी-बच्चों को छोड़ा और साथ में अज्ञानता की गठरियाँ बांधी। उसे माया छोड़ना कैसे कहेंगे?
चाहे कहीं भी जाएँ, पर 'मेरा तेरा' गया नहीं और 'मैं' गया नहीं, तो तेरी माया और ममता साथ ही रहनेवाली है।
एक बार मेरे पास एक आदमी आया और बहुत रोने लगा। कहने लगा, 'अब तो जीना बहुत भारी पड़ता है, आत्महत्या करने को मन करता है।' मुझे मालूम था उसकी बीवी पंद्रह दिन पहले चल बसी थी और पीछे चार बच्चे छोड़ गई थी। इसलिए मैंने उसे पूछा, 'भैया, तुझे ब्याहे कितने साल हुए?' 'दस साल', वह बोला तो दस साल पहले जब तूने उसे देखा नहीं था तब मर गई होती, तो तू रोने बैठता क्या? 'उसने कहा, ' नहीं, तब क्यों रोता? मैं तो उसे पहचानता तक नहीं था तब ।' फिर अब तू क्यों रोता है यह मैं तुझे समझाता हूँ। देख! तू ब्याहने गया, बाजे-गाजे के साथ गया और जब लग्न मंडप में फेरे लेने लगा तब से तू 'यह मेरी पत्नी, यह मेरी पत्नी' ऐसे तू लपेटता गया। मंडप में उसे देखता गया, 'यह मेरी पत्नी' बोलता गया और ममता लपेटता गया। पत्नी यदि बहुत अच्छी हो, तो रेशम का बंधन और बुरी हो, तो सूत का बंधन। यदि तू