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________________ होते। निरंतर वर्तमान में ही बरतते हैं। उनकी दृष्टि में गिलास टूट गया वह भूतकाल और अब क्या होगा, उसके विचार और चिंता, वह भविष्यकाल। ज्ञानी काल के छोटे से छोटे अविभाज्य लघुतम अंश में ही रहते हैं। सारे ब्रह्मांड के प्रत्येक परमाणु से अवगत होते हैं। सारे ज्ञेयों के ज्ञाता-दृष्टा ही होते हैं। समय और परमाणु तक पहुँचना, वह तो ज्ञानी का ही काम! 'गत वस्तु का शोच नहीं, भविष्य की वांछना नहीं, वर्तमान में बरतें सो ही ज्ञानी।' 'परम विनय' और 'मैं कुछ भी नहीं जानता', इन दो ही चीज़ों के साथ जो ज्ञानी के पास पहुँचा, वह पार उतरा ही समझो। अरे! केवल एक ही बार यदि ज्ञानी के चरणों में सर्व भाव समर्पित करके परम विनय से जिसने सिर झुकाया, उसका भी मोक्ष हो जाए, ऐसा गज़ब का आश्चर्य ज्ञानी के चरणों में ही है और वहीं सीधा नहीं रहा तो मोक्ष कैसे पाएगा? __एक घर तो डायन तक छोड़ती है। इसलिए ज्ञानी को छोड़कर और कहीं भी बखेडा कर आया तो हल निकल आएगा, पर ज्ञानी के पास तो विनय में ही रहना, वर्ना भारी बंध पड़ जाएगा। ज्ञानी का विरोध चलेगा पर विराधना नहीं चलेगी। ज्ञानी की आराधना यदि नहीं हो तो हर्ज नहीं पर विराधना तो भूलकर भी मत करना। इसका सदैव ध्यान रखना। ज्ञानी का पद तो आश्चर्य का पद कहलाता है उसकी विराधना में मत पड़ना। ज्ञानी पुरुष के प्रति विभाव का पैदा होना ही विराधना कहलाती है। ज्ञानी पुरुष ही खुद का आत्मा है इसलिए ज्ञानी की विराधना यानी खुद के आत्मा की विराधना करने जैसा है। खुद 'खुद के' ही विराधक हुए। स्वभाव से जो टेढ़ा है, उसे तो विशेष रूप से सावधान रहना होगा, क्योंकि ज्ञानी की एक विराधना असंख्य काल के लिए नर्कगति बँधवा देती है। जिन्हें तीन लोक के नाथ वश में हैं, वहाँ पर यदि सरल नहीं हुआ तो और कहाँ पर सरल होगा? ज्ञानी पुरुष के पास तो पूर्ण सरलता हो, तभी काम होगा। प्रस्तुत ज्ञानग्रंथ के प्रकाशन का प्रयोजन मुख्यतः सात्विक विचारकों, वैज्ञानिक मानसवाले वैचारिक वर्ग और संसारी ज्वाला से तप्त जनसमुदाय की आत्मशांति हो, वही है। ऐसी हार्दिक भावना है कि इस भयावह कलियुग के दावानल में सतयुग जैसी आत्मशांति की अनुभूति कराने में प्रस्तुत ग्रंथ एक प्रबल परम निमित्त सिद्ध होगा। शद्ध भाव से इसी प्रार्थना के साथ! - डॉ. नीरूबहन अमीन इन 'दादा भगवान' ने कभी सपने में भी किसी की विराधना नहीं की है, केवल आराधना ही की है। इसलिए 'दादा भगवान' का नाम लेकर सद्भाव से जो कुछ भी किया जाए, वह अवश्य फलदायी होगा ही! ज्ञानी का वर्णन करने में वाणी असमर्थ है, कलम रुक जाती है। ज्ञानी तो अतुलनीय और नापे न जा सकें, ऐसे होते हैं। उन्हें नापना या तोलना मत। यदि ज्ञानी का तोल करने गए. तो कोई छडानेवाला नहीं मिलेगा, ऐसे चारों बंध पड़ेंगे। अपनी तराज से कहीं ज्ञानी को तोला जाता है? उन्हें नापने जाएगा तो तेरी मति का नाप निकल जाएगा! जिसका एक अक्षर भी मालूम नहीं हो, उसका तोल कैसे होगा? ज्ञानी बुद्धि से नहीं तोले जाते। ज्ञानी के पास तो अबुध हो जाना चाहिए। बुद्धि तो उलटा ही दिखाती है। यदि ज्ञानी की बात समझ में नहीं आती तो समझना कि उतना आड़ापन अंदर भरा पड़ा है। यदि ज्ञानी के पास भल से भी आड़ापन दिखाया तो कभी मोक्ष प्राप्त नहीं होगा। अरे! मोक्ष तो १७
SR No.009575
Book TitleAptavani 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2009
Total Pages141
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size42 KB
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