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________________ ज्ञान स्थापना युगों-युगों तक, आप्तवाणी द्वारा! 'जगत् के बारे में जैसा है वैसा', सभी स्पष्ट हुआ है। सभी स्पष्ट हो जाने दो। जितनी वाणी निकल जाए, उतनी एक बार निकल जाने दो। लोग पूछते जाएंगे और नये-नये स्पष्टीकरण निकलते जाएंगे। रोजाना निकलते हैं। वह सभी छप जाएगा, तब फिर बाद में लोग उसमें से सारा निष्कर्ष निकालकर ज्ञान का स्थापन करेंगे। अत: आप्तवाणियों में तो आत्मा का अनुभव कहा गया है। इनमें सब कुछ आ जाता है।। 'मैं जो बोलता हूँ, उसमें से एक शब्द भी इन्होंने गवाया। नहीं है। सारे शब्द टेपरिकॉर्डर में संग्रह करके रखे हैं और यह तो विज्ञान है न! इस दुनिया में जितने भी शास्त्र हैं, जो पुस्तकें हैं, वे सारे ज्ञानमय हैं, यह अकेला विज्ञानमय है । विज्ञान अर्थात्। इटसेल्फ(स्वयं ) क्रियाकारी! शीघ्र फल देनेवाला है, तुरंत ही मोक्ष देता है! - दादाश्री दादा भगवानना श्रेणी असीम जय जयकार हो DON970-01-000-590 आप्तवाणी श्रेणी - १ Rs.40/ 9788189-913sob
SR No.009575
Book TitleAptavani 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2009
Total Pages141
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size42 KB
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