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अहिंसा
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उसने जैसे भाव किए हों, वैसे भावों से ही उसका हिसाब बनता है। परन्तु मरणकाल आए बिना किसी से मरता नहीं।
इसलिए इसमें सेन्टेन्स क्या समझना है? कि उस जीव का मरणकाल नहीं आया हो, तब तक कोई मार सकता ही नहीं। और मरणकाल किसी के हाथ में नहीं है।
नहीं 'मरता' कोई भगवान की भाषा में
प्रश्नकर्ता: परन्तु यह जो हिंसा नहीं करनी वह दैवीगुण है या नहीं? यानी हिंसा करना वह गुनाह है या नहीं?
दादाश्री : मैं आपको गुप्त बात बता देता हूँ? ! इन सबके सामने, कोई दुरुपयोग करे ऐसा नहीं इसलिए कह रहा हूँ।
इस जगत् में भगवान की दृष्टि से कोई मरता ही नहीं। भगवान की भाषा में कोई मरता ही नहीं, लोकभाषा में मरता है । इस भ्रांति की भाषा में मरता है। यह खुली बात कही। कभी भी बोला नहीं। आज आपके सामने रहा हूँ।
भगवान के ज्ञान में जो बरतता है, वह मेरे ज्ञान में बरतता है, वह यह है कि इस जगत् में कोई जीवित है नहीं और कोई मरा ही नहीं। अभी तक यह दुनिया चल रही है, तब से कोई मरा ही नहीं। जो मरता हुआ दिखता है वह भ्रांति है। और जन्म लेता हुआ दिखता है वह भ्रांति है। यह भगवान की भाषा की खुली हक़ीक़त कह दी मैंने। अब आपको पुरानी समझ को पकड़कर रखना हो तो पकड़े रहना और नहीं पकड़ना हो तो नयी को पकड़ना । यह हमारी बात समझ में आई आपको ?
प्रश्नकर्ता : बात समझ में आई, पर आपने बहुत ही अस्पष्ट रूप से कही है।
दादाश्री : हाँ, मतलब भगवान की भाषा में कोई मरता ही नहीं । हज़ारों व्यक्ति वहाँ कट गए हों। वह महावीर भगवान जानें, तो महावीर भगवान को कोई असर नहीं होता। क्योंकि वे जानते हैं कि कोई मरता
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ही नहीं। यह तो लोगों के लिए मरते हैं, वास्तव में मरता नहीं है। यह दिखता है, वह सब भ्रांति है। मुझे कोई भी कभी भी मरता हुआ दिखा ही नहीं न! आपको दिखता है, उतनी शंकाएँ आपको हुआ करती हैं कि 'क्या हो जाएगा, क्या हो जाएगा?' तब मैं कहूँ कि, 'भाई, कुछ होगा नहीं, तू मेरी आज्ञा में रहना । '
इसलिए आज सूक्ष्म बात मैंने कर डाली कि भगवान की भाषा में कोई मरता नहीं। फिर भी भगवान से लोगों ने कहा कि, 'भगवान, यह ज्ञान खुला ही कर दो न!' तब भगवान कहते हैं, 'ना, खुले रूप से कहा जाए ऐसा नहीं है। लोग फिर ऐसा ही समझेंगे कि कोई मरता ही नहीं । इसलिए वे चाहे उसे खा जाएँ, वैसे भाव करेंगे, भाव बिगाड़ेंगे।' लोगों के भाव बिगड़ेंगे इसलिए भगवान ने यह ज्ञान खुला नहीं किया। अज्ञानी लोगों को भाव बिगाड़ने में समय नहीं लगता और भाव बिगड़े यानी 'खुद' वैसा हो जाए। क्योंकि जो है वह खुद ही है, उसका कोई ऊपरी ही नहीं ।
इसलिए जब तक भ्रांति है, तब तक ऐसा बोला ही नहीं जा सकता कि भगवान की भाषा में कोई मरता नहीं। यह तो आपने पूछा ठीक से, तब मुझे खुला करना पड़ा। उसमें अपने 'महात्माओं' के बीच कहने में हर्ज नहीं है। ये 'महात्मा' दुरुपयोग करें ऐसे नहीं हैं। आप 'भगवान की भाषा में कोई मरता नहीं है' ऐसा वहाँ सबको कह दोगे?
प्रश्नकर्ता: मुझे किसी का डर नहीं। मैं तो हिम्मत से कहूँ ।
दादाश्री : मत कहना। यह ज्ञान खुला किया जाए ऐसा नहीं है। यह भगवान की भाषा का ज्ञान तो जो 'शुद्धात्मा' हो गया है, उसे ही जानने जैसा है। दूसरों को जानने जैसा यह ज्ञान नहीं है। दूसरे लोगों के लिए यह पोइजन है।
भारत में भावहिंसा भारी
प्रश्नकर्ता: अहिंसा का व्यापक प्रचार करने में बहुत समय लगेगा? दादाश्री : बहुत समय लगे तब भी प्रचार पूरापूरा नहीं होगा। क्योंकि