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अहिंसा
अहिंसा भगवान ने अहिंसा की प्रेरणा दी। मारने का जो अहंकार है, उसे छुड़वाने के लिए ये सब बातें करी।
प्रश्नकर्ता : इतना पचाना साधारण मनुष्य के लिए ज़रूरत से ज्यादा ज्ञान नहीं कहलाता?
दादाश्री : ना, वह पचे ऐसा नहीं। इसलिए खुला नहीं किया। सभी को ऐसा ही कहा कि आप बचाओ, नहीं तो यह मर जाएगा।
समझदार व्यक्तियों के लिए है, जो अहिंसा के पुजारी हैं, उनके लिए ही यह वाक्य कहते हैं। और हिंसा के पुजारी हैं, उनके लिए यह नहीं कहते। नहीं तो वह भावना करेगा कि मुझे इन लोगों को मार डालना है। यानी इस भव में तो वह नहीं होनेवाला, पर यह भावना करेगा तो आनेवाले भव में फल आएगा।' इसलिए यह बात किसके पास करनी है? यह अहिंसा के पुजारियों के पास ही बात करने को कहा है।
_ 'यह' सबके लिए नहीं है भगवान ने कहा है कि मारने का अहंकार मत करना और बचाने का अहंकार भी मत करना। तू मारेगा तो तेरा आत्मभाव मरेगा, बाहर कोई मरनेवाला नहीं है। इसलिए उससे खुद की हिंसा होती है, दूसरा कुछ नहीं। आत्मा कोई ऐसे मरता नहीं, पर यह तो खुद, खुद की हिंसा कर रहा है। इसलिए भगवान ने मना किया है। और तू बचाएगा वह झूठा अहंकार कर रहा है। वह भी तू आत्मभाव की हिंसा ही कर रहा है। इसलिए ये दोनों गलत कर रहे है। यह सब तूफ़ान छोड़ न। बाकी कोई किसी को मार सकता ही नहीं। पर भगवान ने यदि ऐसा साफ-साफ कहा होता कि मार सकता ही नहीं, तो लोग अहंकार करते कि मैंने मारा! यह सब किसी में ताकत नहीं है। बगैर ताकत का यह जगत् है। व्यर्थ ही बिना काम के विकल्प करके भटका करते हैं। ज्ञानियों ने देखा है। यह जगत् किस तरह चला करता है। इसलिए ये सब गलत विकल्प पैठ गए हैं, वहाँ फिर निर्विकल्प किस तरह से हों फिर?
यानी ये सारे जीव हैं न, वे कोई किसी को मार सकते ही नहीं। मार सकने की किसी में शक्ति ही नहीं। फिर भी भगवान बोले कि हिंसा छोड़कर और अहिंसा में आओ। वे क्या कहते हैं कि मारने का अहंकार छोड़ो। दूसरा कुछ छोड़ना नहीं है, मारने का अहंकार छोड़ना है। आपके मारने से मारा नहीं जाता, तो फिर अहंकार किसलिए करते हो बिना काम के? अहंकार करके ज्यादा लपेट में आओगे. भयंकर जोखिम मोल लोगे। उस जीव को उसके निमित्त से मरने दो न! वह मरनेवाला ही है, परन्तु आप अहंकार किसलिए करते हो? इसलिए अहंकार बंद करवाने के लिए
मारने-बचाने का गुप्त रहस्य अब 'इसने जीव को मारा, इसने ऐसा किया, इसने बचाया' वह सब व्यवहार मात्र है। करेक्ट नहीं है यह। रियल में क्या है? कोई भी जीव किसी भी जीव को मार सकता ही नहीं। उसे मारने में तो सभी साइन्टिफिक सरकमस्टेन्शियल एविडेन्स इकट्ठे हों, तब ही मरे। अकेला कोई व्यक्ति स्वतंत्र ऐसे मार नहीं सकता है। अब एविडेन्स इकट्ठे हों तभी मरे और एविडेन्स अपने हाथ में है नहीं। इसलिए कोई भी जीव किसी भी जीव को बचा सकता ही नहीं। वह तो साइन्टिफिक सरकमस्टेन्शियल एविडेन्स हो तो ही बचे, नहीं तो बचे नहीं। यह तो खाली बचाने का अहंकार करता है। पर साथ-साथ ऐसा कहा कि तू मन में से भाव निकाल दे कि मुझे मारना है। क्योंकि भाव एक एविडेन्स है। वे दूसरे एविडेन्स इकट्ठे होते हैं और यह एविडेन्स इकट्ठा हो तब कार्य हो जाएगा। मतलब उनमें से 'वन ऑफ द एविडेन्स' 'खुद का' भाव है। उसके कारण सभी एविडेन्स का 'खुद' इगोइज़म करता है।
मरणकाल में ही मरण यह तो हम सूक्ष्म बात कहना चाहते हैं कि किसी जीव को उसका मरणकाल का संयोग हुए बिना किसी से मारा नहीं जा सकता। अभी सात बकरे हों न, तब वह दो बेचता है और, वह जिसका मरणकाल आया हो, उसे ही बेचता है। अरे, सात में से ये दो तुझे प्यारे नहीं थे? वे भी अच्छे ही हैं बेचारे, तो तू उन्हें क्यों दे देता है? और बकरा भी उसके साथ खुश