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महाकाव्य में ज्ञान, उपदेश और नीतिविषयक जानकारी अथवा शास्त्रीय शैली का पाण्डित्य प्रदर्शन करने की परंपरा सभी देशों के काव्यों में बहुत प्राचीन काल से दिखाई पड़ती है । संस्कृत, प्राकृत और अपभ्रंश के काव्यों में भी नीति-धर्म विषयक उपदेश तथा अन्य विषयों का तथ्य प्रकाशन किया गया है । तद्नुसार इस काव्य में भी धर्म नीति, ज्ञान-विज्ञान, सदाचार, शास्त्रीय अभिज्ञता आदि विषयों से संबन्धित वर्णनों की कोई कमी नहीं है । जो कवि के धार्मिक दृष्टिकोण और शास्त्रीय काव्य परंपरा के प्रभाव की देन है ।
शैली की दृष्टि से प्रस्तुत आलोच्य 'शिशुपालवध" महाकाव्य की शैली संस्कृत के अन्य काव्यों से अपना अलग स्थान रखती है । जहाँ कालिदास की शैली प्रासादिक, स्वाभाविक और कोमलकान्तपदावली से युक्त है, वहीं माघ की शैली धीर और गम्भीर है । माघ का समासान्तपद - विन्यास उनकी शैली को गंभीरता और उदात्तता प्रदान करता है । सच पूछा जाय तो माघ के पदविन्यास में गौड़ी की विकटबन्धता है जो हृदय को आकर्षित करने में अलम् है । इस प्रकार हम देखते हैं कि महाकाव्य के लिए आवश्यक शैली के गुण- अत्यन्त गरिमा और उदात्तता - शिशुपालवध महाकाव्य में निहित हैं ।
अब प्रश्न उठता है कि क्या 'शिशुपालवध' में वह अनवरुद्ध जीवनी शक्ति और सशक्त प्राणवत्ता है ? जो महाकाव्य का शाश्वत लक्षण है । इसका समाधान यह है कि 'शिशुपालवध' एक अलंकृत विदग्ध महाकाव्य है । और अलंकृत महाकाव्यों में रामायण- महाभारत जैसे विकसनशील महाप्रबन्ध काव्यों में जैसी जीवनी शक्ति और प्राणवत्ता नहीं होती । कारण यह है कि विकसनशील महाप्रबन्धकाव्य युग-युग के मानव समाज की असीम जीवनी शक्ति लेकर पुष्ट होते हैं । इसके विपरीत अलंकृत महाकाव्य में उतनी जीवनी शक्ति और प्राणवत्ता का न होना स्वाभाविक ही है । फिर भी व्यापकता, और लोकप्रियता की दृष्टि से उत्तर कालीन अलंकृत महाकाव्यों में 'शिशुपालवध' महाकाव्य का बृहत्त्रयी - किरातार्जुनीय, शिशुपालवध और नैषधीयचरित' में अपना विशिष्ट महत्त्वपूर्ण स्थान आज करीब-करीब डेढ़ हजार वर्ष के पश्चात् भी बना हुआ है । उसकी लोकप्रियता - प्रचार प्रसार में आज भी कोई कमी नहीं आयी है । इसका एकमात्र कारण उसकी वह जीवनी शक्ति और प्राणवत्ता ही है जो संस्कृत के अन्य पुराने तथा उसके उत्तरवर्ती अलंकृत महाकाव्यों में नहीं है । अतः समग्र दृष्टि से हम कह सकते हैं कि संस्कृत महाकाव्यों की परम्परा में माघ का स्थान कालिदास से दूसरा है । निश्चित ही शिशुपालवध संस्कृत काव्य साहित्य का एक जगमगाता अनमोल रत्न है । शिशुपालवध की यह प्राणवत्ता केवल माघ की वैयक्तिक प्राणवत्ता नहीं अपितु उसमें उस युग की समस्त प्राण - धारा भी मिली हुई है, जिसे माघ ने आत्मसात् कर लिया था ।