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माघ की रचनाएँ
महाकवि भारवि की तरह ही माघ की भी केवल एक ही रचना शिशुपालवध' आज प्राप्त है । यद्यपि माघ काव्य के टीकाकार वल्लभदेव की टीका में 'शील' शैलतटात्पततु तथा 'नारीनितम्बफलके' ये दो श्लोक और क्षेमेन्द्र की
'औचित्यविचारचर्चा' में
बुभुक्षितैर्व्याकरणं न भुज्यते पिपासितैः काव्यरसो न पीयते । न विद्यया केनचिदुद्धृतं कुलं हिरण्यमेवार्जय निष्फलाः कलाः ।।'
ये प्रसिद्ध श्लोकः देखने को मिलते हैं, किन्तु ये किस ग्रन्थ में से उद्धृत किये गये हैं, ज्ञात नहीं होता । संभव है, माघ समय-समय पर कुछ फुटकर रचनाएँ राजसभा या कवि गोष्ठियों में सुनाने के लिये लिखते रहे हों, इसकी पुष्टि उनके अप्रासंगिक-श्रृंगार-लीलाओं के वर्णनों को देखने पर होती है । इन्हीं मुक्तक - वर्णनों को कवि ने बाद में शिशुपालवध - काव्य में अनुस्यूत कर दिया हों यही कारण है ि शिशुपालवध - काव्य के इतिवृत्त - निर्वाहकता में बाधा उपस्थित हो गई है । 'सुभाषितावलि' तथा 'औचित्यविचारचर्चा' में अंकित श्लोकों के अतिरिक्त सुभाषितरत्नभाण्डागारम् में भी कई श्लोक माघ के नाम से देखने को मिलते हैं । किन्तु इनका मूलरूप ज्ञात नहीं होता । प्रबन्ध काव्य के रूप में केवल 'शिशुपालवध' महाकाव्य ही आज उपलब्ध है, जो उनके उत्कृष्ट कलावादी काव्यत्व को सिद्ध करने में निश्चय ही अलम् है ।
शिशुपालवध कवि माघ ने अपने काव्य के लिए कथा भारवि के किरातार्जुनीय की तरह महाभारत से ग्रहण की है। इसमें शिशुपालवध - कृष्ण तथा शिशुपाल के वैर की, तथा युद्ध में कृष्ण के द्वारा चेदिनरेश शिशुपाल के वध किये जाने की लघु-कथा वर्णित है । यही 'शिशुपालवध' महाकाव्य का वर्ण्य विषय है । माघ वैष्णव होने के कारण इसका प्रेरणा स्रोत प्रधानतः भागवतपुराण है, और गोण रूप से महाभारत । सर्गो की संख्या २० तथा श्लोकों की १६५० । द्वारका में श्रीकृष्ण के पास नारद का आगमन तथा उनके द्वारा दुष्टों - शिशुपालादि - के वध के लिए प्रेरित किये जाने की कथा वर्णित है ( १ सर्ग ), युधिष्ठिर के राजसूययज्ञ में जाने के लिए बलराम तथा उद्धव द्वारा मन्त्रणा करने के पश्चात् निश्चय किया जाता है ( २ सर्ग ); श्रीकृष्ण यादव सेना के साथ इन्द्रप्रस्थ के लिए प्रस्थान करते हैं ( ३ सर्ग ), इसके पश्चात् महाकाव्य के लिए लक्षण ग्रन्थकारोक्त आवश्यक पूरक विषयों का वर्णन आरम्भ होता है ।
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रैवतक पर्वत का वर्णन ( ४ सर्ग ), कृष्ण के रैवतक पर्वत पर निवास करने का वर्णन (५ सर्ग), ऋतुओं का वर्णन ( ६ सर्ग ), वनविहार वर्णन ( ७ सर्ग ), जलक्रीडा