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________________ [ 16 ] तथा दर्शनों से लकर राजनीति तक का परिनिष्ठित ज्ञान इनके काव्य में देखने को मिलता है। यही नहीं, अलंकार शास्त्र, कामशास्त्र, सङ्गीत, अश्वविद्या, तथा हस्तिविद्या के वे उत्तम ज्ञाता हैं । माघ एक प्रवीण वैयाकरण हैं । इसका ज्ञान उनके द्वारा यत्र-तत्र उल्लिखित व्याकरण के सूक्ष्म नियमों से होता है । इसी प्रकार वे सङ्गीतशास्त्र के भी सूक्ष्म विवेचक हैं। ( ११ । १ - माघ ) निश्चय ही इतने शास्त्रों का परिनिष्ठित ज्ञान अन्य किसी संस्कृत कवि में देखने को नहीं मिलता । बहुमुखी प्रतिभाशाली माघ का कवि हृदय जब भी बाहर आने का, अपने को प्रस्फुटित होने का अवसर पाता पाण्डित्य उसे पीछे ढकेल कर अपना प्रभुत्व जमा लेता है । परिणामतः आज के नये आलोचक उसे ठीक से समझ पाने में सर्वथा असमर्थ रहते हैं । परिणामतः ये माघ को 'कविरुढियों का दास कहते हैं ।'' किन्तु ऐसा दोषारोपण करने के पूर्व सुविज्ञ लेखक को भली प्रकार से संस्कृत कवि-परम्परा के काव्यसाहित्य पर दृष्टिपात करना चाहिए कि ऐसा कौन सा महाकवि हुआ है जिसने काव्यरुढ़ियों का वर्णन अपने काव्य में नहीं किया ? डॉ० व्यास ने ही अपने संस्कृत - कवि दर्शन में एक स्थान पर यह लिखा है कि " अश्वघोष में ही सर्वप्रथम हमें कुछ ऐसी काव्यरुढ़ियाँ मिलती हैं, जिनका प्रयोग कालिदास से लेकर - श्रीहर्षतक मिलता है ।" क्या ये कवि रुढियों के दास नहीं हैं । यदि हम पुराण साहित्य की ओर दृष्टिपात करें तो हमें श्रीमद्भागवत महापुराण तक में अपने अभीष्ट - प्रिय को देखने के लिए लालायित पुर सुन्दरियों का वर्णन देखने को मिलता है । जिसकी परम्परा -श्रीहर्ष तक देखने को मिलती है । भारतीय आचार्यों ने महाकाव्य में वस्तु - व्यापार वर्णन पर बहुत अधिक जोर दिया है । अलंकृत महाकाव्य का यही प्रधान लक्षण है । जैसे प्रकृति चित्रण तथा जीवन के विभिन्न व्यापारों और परिस्थितियों का चित्रण आदि । ऐसी स्थिति में यह कहना कि माघ ने “मौलिकता को कुचल दिया है" अपने पूर्व कवियों की रूढ़ पद्धति का माघ की प्रतिभा आश्रय न लेती तो अभिनव सरणि को उद्भावित करती" आदि आदि-माघ के प्रति बुद्धिपूर्वक अन्याय करना है । जिन-जिन पूर्व कवियों के वर्णनों के अनुरूप माघ ने अपने काव्य वर्णनों का अंकन किया है, उन्हें चित्रांकित करने की कल्पना, माघ की अपनी है । हू-ब-हू अनुकरण करने की चेष्टा नहीं की गई है । अपनी प्रकृति के अनुसार उन वर्णनों को सजाने, उन्हें हल्के या गहरे रंग से रंगने का कार्य माघ का है। वैसे देखा जाय तो कोई भी "विचारक आसमान में नहीं पैदा होता है । सबकी जड़ परंपरा में गहराई तक गयी हुई हैं । सुन्दर से सुन्दर फूल यह दावा नहीं कर सकता कि वह पेड़ " १. संस्कृत कविदर्शन २. भागवत - दशमस्कन्ध - अ० ४१ डॉ० व्यास, पृ० १७६ ३. अपारेकाव्यसंसारं कविरेकः प्रजापतिः । यथाऽस्मै रोचते विश्वं तथेदं परिकल्प्यते ॥
SR No.009569
Book TitleShishupal vadha Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajanan Shastri Musalgavkar
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages231
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size63 MB
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