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द्वितीयः सर्गः हिन्दी अनुवाद-हे कृष्ण ! रुक्मिणी का हरणकर आपने शिशुपाल को शत्रु बना लिया है। क्योंकि दृढमूलवाले वैररूपी वृक्ष की जड़ स्त्रियां ही होती हैं । (अर्थात् स्त्रियां वैर की जड़ हुआ करती हैं ) ।। ३८ ॥ विशेष-श्री कृष्ण ने रुक्मिणी का हरण किया, वह धर्मशास्त्र सम्मत या
(1) "गान्धर्वो राक्षसश्चैव धम्यौं क्षन्नस्य तौ रमृती।" मनु. ३।२६ गान्धर्व और राक्षस विवाह सत्रिय के लिये धर्मयुक्त कहे गये हैं।
(२) रुक्मिणी-भागवत ( ३. ३. ३.) और विष्णु पुराण (५. २६. १) के अनुसार रुक्मिणी विदर्भनरेश भीष्म की पुत्री थी। वह श्रीकृष्ण की पटरानियों में सबसे बडी रानी थी। हरिवंश के अनुसार श्रीकृष्ण इनपर तथा रुक्मिणी श्री कृष्ण पर आसक्त थी। रुक्मिणी का विवाह जरासंध की प्रेरणा तथा रुक्मी की सहमति से शिशुपाल के साथ निश्चित हो गया था, किन्तु विवाह के एक दिन पूर्व रुक्मिणी का सन्देश प्राप्त होने के कारण, जब रुक्मिणी इन्द्राणी पूजा करने मन्दिर में गयी तभी श्रीकृष्ण भी वलराम के साथ रथ लिये वहाँ उपस्थित हो गये। उसके मन्दिर से बाहर आते ही रुक्मिणी को रथ पर बैठा श्रीकृष्ण चले आये । समाचार पाकर शिशुपाहादि श्रीकृष्ण से युद्ध करने लगे पर सब परास्त हुए । तभी से शिशुपाल श्रीकृष्ण का विरोधी हो गया था।
प्रसङ्ग-बलराम जी श्रीकृष्ण को शिशुपाल द्वारा किये गए अपकारों का स्मरणः कराते हैं। अथ तेनापि त्वं विप्रकृत इत्याह
त्वयि भौमं गते जेतुमरौत्सीत्स पुरीमिमाम् ।
प्रोषितार्यमणं मेरोरन्धकारस्तटीमिव ॥ ३९ ॥ त्वयीति ॥ त्वयि भूमेरपत्यं पुमांसं भौमं नरकासुरं जेतु गते सति स चैद्य इमां पुरी द्वारकां प्रोषितोऽर्यमा सूर्यो यस्यास्तां मेरोस्तटीं सानुमन्धकार इवारीत्सीत् रुद्धवान् । रुधेरनिटो लुङि सिचि वृद्धिः । उपमालङ्कारः ॥ ३९ ॥ ___ अन्वयः-स्वयि भौमं जेतुं गते (सति) इमां पुरी प्रोषितार्यमणं मेरोः तटी अन्धकारः इव अरौत्सीत् ।। ३९॥
हिन्दी अनुवाद-( बलराम जी कहते हैं कि) भौमासुर को जीतने के लिए आपके (श्री कृष्ण के ) प्रस्थान करने (चले जाने ) पर उस (शिशुपाल ) ने इस नगरी (द्वारका) को उस प्रकार घेर लिया, जिस प्रकार सूर्य के अस्त हो जाने पर मेरु-पर्वत के शिखर को अन्धकार घेर लेता है ॥ ३९ ॥
विशेष-भौमासुर के वध की कथा का वर्णन भागवत के दशमस्कन्ध में देखना चाहिये।