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शिशुपालवधम्
हिन्दी अनुवाद-मुखरूपी कमल के चारों ओर उडनेवाले भ्रमरों को अपनी उज्ज्वल दशनकान्ति से श्वेत करते हुए बलराम बोले ॥ २१॥
विशेष-बलरामजी के मुखरूपी कमल के चारो ओर भ्रमरों के घूमने का तारपर्य केवल इतना ही है कि उन्होंने रेवती की उच्छिष्ट मदिरा का पान किया था ( और वह पद्मिनी नायिका होने के कारण, उसका निःश्वास स्वभावतः ही सुवासित था।) जिससे उनका मुख और निःश्वास भी उसके संसर्ग से सुवासित हो गया था।॥ २१ ॥
प्रसङ्ग-चलराम जी श्रीकृष्ण के मत का ही अनुमोदन करते हैं। किमुवाचेत्याह
यद्वासुदेवेनाऽदीनमनादीनवमीरितम् ।
वचसस्तस्य सपदि क्रिया केवलमुत्तरम् ॥ २२ ॥ रामो जगादेत्युक्तम् । किं तदित्याकाङ्क्षायामाह
यदिति ॥ वासुदेवेन न दीनमित्यदीनमकातरं नादीनवोऽस्येत्यनादीनवं निर्दोपम् । 'दोष आदीनवो मतः' इत्यमरः। यद्वच ईरितम् । 'उत्तिष्ठमानस्तु परः' इत्यादिपक्षमाश्रित्य यदुक्तमित्यर्थः तस्य सपदि क्रिया केवलं सद्योऽनुष्ठानमेवोत्तरम् । सिद्धान्तस्य वोक्तत्वादिति भावः ॥ २२ ॥
अन्वयः-वासुदेवेन अदीनं अनादीनवं यत् ईरितं तस्य वचसः सपदि क्रिया केवलं उत्तरम् ॥ २२ ॥
हिन्दी अनुवाद-(बलराम जी ने कहा कि) श्रीकृष्ण का यह कथन"हित चाहनेवाले व्यक्ति को बढ़ते हुए शत्रु की उपेक्षा नहीं करनी चाहिये"(अत्यन्त ) ओजस्वी और निर्दोष है, तत्काल कार्य में परिणत करना ही उसका उत्तर है ॥ २२ ॥
प्रसङ्ग-बलरामनी पूर्वोक्त श्रीकृष्ण के कथन की विशेषता का उल्लेख करते हैं
नैतल्लध्वपि भूयस्या वचो वाचाऽतिशय्यते ॥
इन्धनोघधगप्यग्निस्त्विषा नात्येति पूषणम् ॥ २३ ॥ अथ तदेव प्रतिपादयिष्यन्ननन्यातिशयतयोपस्करोति
नैतदिति ॥ लघु संक्षिप्तमप्येतद्वचो भूयस्या बहुतरया। विस्तृतयाऽपीत्यर्थः । 'द्विवचनविभज्य-' (५।३।५७) इत्यादिना ईयसुनि 'बर्लोपोभू च बहोः'(६।४।१५८)