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शिशुपालवधम् रामानुरोधानुरुद्धाम् अर्थविदः कार्यज्ञस्य अत एव पवनव्याधेरुद्धवस्य गिरमुत्तरपक्षता सिद्धान्त पक्षतां प्राषयन् । स्वयमसत्पक्षावलम्बित्वादिति भावः । अनेन रामस्य व्यग्रतोक्ता ॥१५॥
अन्वयः--विवक्षितां तत्क्षणप्रतिसंहृता अर्थविदः पवनव्याधेः गिरं उत्तरपक्षता प्रापयन् (रामः जगाद) ॥ १५॥
हिन्दी अनुवाद-कहने के लिये उत्सुक (किन्तु बलराम जी को बोलते हुए देखकर ) तरक्षण ही रोकी गई कार्यज्ञ (म्यवहारदक्ष) उद्धवजी की वाणी को उत्तरपक्ष में स्थापित करते हुए ( बलराम जी बोले)। ( उद्धवजी इसी विषय पर बलराम के पूर्व कुछ कहना चाहते थे, पर यलराम ने सिद्धान्तपत में कहने का महत्व देकर उन्हें उस समय रोक दिया)॥ १५॥
प्रसन-प्रस्तुत श्लोक में बलराम जो अपने लाल आँखों को घुमाते हुए अपने विचारों को व्यक्त करते हैं।
घूर्णयन्मदिरास्वादनदपाटलितद्युती ॥
रेवतीदशनो' -च्छिष्टपरिपूतपुटे दृशौ ॥ १६ ।। घूर्णयन्निति ॥ पुनः। मदिरास्वादेन मद्यपानेन यो मदस्तेन पाटलिता ईषद्रक्तीकृता द्युतिययोस्ते, रेवत्या देव्याः वदने यदुच्छिष्टं मद्यलेपताम्बूलादि । अक्षिचुम्बनसंक्रान्तमिति भावः । तेन परिपूते शुद्ध पुटे ययोस्ते दृशौ घूर्णयन् भ्रामयन्निति मद्यविकारोक्तिः । उच्छिष्टपरिपूते इत्यत्र 'रतिकाले मुखं स्त्रीणां शुद्धमाख्नेटके शुनाम्' इति स्मरणात् उच्छिष्टस्य पावित्र्यजनकत्वविरोधस्याभासत्वाद्विरोधाभासोऽलङ्कारः । आभासत्वे विरोधस्य विरोधाभास उच्यते' इति लक्षणात् ॥ १६॥
अन्वयः-मदिरास्वादमदपाटलितद्युती, रेवतीपदनोच्छिष्टपरिपूतपुटे दृशौ घूर्णयन् ( रामो जगाद)॥१६॥
हिन्दी अनुवाद-मद्यपान-जनित नशे से कुछ-कुछ रक्तवर्णवाले तया रेषती के उच्छिष्ट (मद्यपानादि ) से शुद्ध प्रान्तों वाले दोनों नेत्रों को घुमाते हुए (बलराम जी बोले)॥ १६ ॥
( नेत्र-चुम्बन के समय रेवतो के मुख का उच्छिष्ट ताम्बूल आदि के लगने से पवित्र और मदिरा पान से लाल-लाल आखां को घुमाते हुए--) (बलराम
बोले)॥१६॥
विशेष-रतिकाल में नेत्र का चुम्बन करना कामशास्त्र में वर्णित है। और कहा भी है
१. वदनो।