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भिन्न वृत्तों का प्रयोग कर लिया है। अन्तिम श्लोक ही जिनमें अन्यवृत्तक हैं, वे सर्ग हैं-प्रथम, षष्ठ, सप्तम, दशम, एकादश और अष्टादृश । __ जहाँ तक श्रीहर्ष के छन्दोज्ञान अथवा छन्दःप्रियता का प्रश्न है, कवि छन्दःशास्त्र का पूर्ण ज्ञाता है, उसने विभिन्न छन्दों का प्रयोग किया है । सब मिलकर अट्ठारह,-उन्नीस प्रकार के छन्दः 'नैषध' में हैं। उपजाति का प्रयोग कवि ने सबसे अधिक किया है सात सर्गों में। चार सगर्गों में प्रधान छन्द वंशस्थ है । दो-दो सर्ग वसंततिलका, स्वागता रथद्धता और अनुष्टुप-प्रधान है और एक-एक में द्रुतविलम्बित, वैतालीय और हरिणी का प्रयोग है। इसी दृष्टि से कवि की छन्दःप्रियता का तारतम्य प्रतीत हो जाता है। मंदाक्रांता छन्द में पांच ही श्लोक हैं, शताधिक शार्दूलविक्रीडित हैं। स्थान-स्थान पर स्रग्धरा, शिखरिणी, पुष्पिताग्रा, मालिनी, वियोगिनो का भी प्रयोग है, अचलघृति, पृथ्वी, तोटक भी हैं। गणनाकारों ने इनकी गणना भी की है। श्री नलिनीनाथदास गुप्त ने श्रीहर्ष के छन्दोनैपुण्म की प्रशंसा की है। उनकी मान्यता है कि 'नैषधीयचरित' में लगभग बीस प्रकार के छन्दों का प्रयोग हुआ है, जिनमें अधिकांश गीतात्मक लघुवृत्त हैं, बड़े छन्द मंदकांता, शिखरिणी, स्रग्धरा आदि का प्रयोग अपेक्षाकृत विरल है। परन्तु वाक्यावली
और शब्दावली में श्रीहर्ष की रुचि कठिनता और श्लिष्टता की ओर है, जिसमें कहीं-कहीं लयात्मकता और गति में बाधा पहुँची है।
(५) वर्णन-श्रीहर्ष कल्पना के धनी कवि हैं। किसी विषय में कितना विचार किया जा सकता है, 'नैषधीयचरित' में इसकी इयत्ता नहीं प्रतीत होती । चाहे जो विषय हो, श्रीहर्ष उसका विस्तृत विवरण देने में समर्थ हैं । 'नैषध' में मनुष्य, पशु, पक्षी, नगर, उपवन, प्रभात, रात्रि, स्वयंवर आदि के विस्तृत और कवित्व-पूर्ण वर्णन हैं।
मानव वर्णन में नल और दमयन्ती के विस्तृत वर्णन हैं। प्रथमसर्ग के इकतीस श्लोकों में नल का और द्वितीय सर्ग के छब्बीस श्लोकों में दमयन्ती का वर्णन है। इनकी वियोग-कथा के भी विस्तृत काव्यमय वर्णन हैं; तृतीय सर्ग (१००-१२८ ) में नल की वियोगदशा का और चतुर्थ ( २-१०१) में दमयन्ती की। अगले आठ श्लोकों (१०२-१०९) में प्रश्नोत्तर रूप में दमयन्ती और सखियों के माध्यम से यह विवरण प्रस्तुत हुआ है।