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पशु वर्णन में अश्व-वर्णन है प्रथमसर्ग (५८-६४ ) में और हंस तथा उसकी उड़ान का तो क्रमशः प्रथमसर्ग ( ११८, १२१, १२२ ) और द्वितीय सर्ग ( ६५-७२ ) में अत्यन्त स्वाभाविक विवरण उपस्थित किया गया है। ___ काव्यशास्त्रीय परम्परा के अनुसार उपवन (११७६-१०६ ) का और उसी में स्थित सरोवर ( १०७-११७ ) का वर्णन है। उन्नीसवें सर्ग (१६४) में प्रभात और सूर्योदय के विस्तृत विवरण हैं; इक्कीसवें (१२५-१३४) में संध्या का । बाईसवें सर्ग में क्रमशः संध्या, राषि और चंद्रोदय के विशद वर्णन श्रीहर्ष की काव्य-प्रतिभा के परिचायक हैं। कल्पना और उत्प्रेक्षा की ऊंची उड़ान इन वर्णनों में प्राप्त होती है।
नगर और नगर-जीवन की समृद्धि तथा क्रिया-कलाप तो कवि ने बड़ी स्वाभाविक दृष्टि से चित्रित किये हैं। द्वितीय सर्ग ( ७३-१०६ ) के कुंडिनपुरी तथा सप्तदश (१६१-२०१ ) में नल की राजधानी तथा राजोद्यान ( २०६-२०८ ) का वर्णन किया गया है। राज्यसभा और स्वयंवर का इतना विशद और विस्तृत वर्णन कदाचित ही कहीं प्राप्त हो, पूरे पांच सर्ग पांच सौ के लगभग श्लोक ( १०-१४ सर्ग ) इस विवरण से पूर्ण हैं । भोज, भोज्य पदार्थ, वरयात्रा आदि के वर्णन तो बड़े रमणीय और मनोरंजक हैं । इन सभी वर्णनों की एक बड़ी विशेषता यह है कि वे शास्त्रीय परम्परा का निर्वाह करते हुए भी कथानक के भाग ही प्रतीत होते हैं। ये वर्णन ऊपर से जोड़े गये, अलग-अलग से नहीं लगते । ___ युद्ध, समुद्र आदि के वर्णन प्रायः नहीं हैं किन्तु कया में इनका अवसर भी तो नहीं है । शृङ्गार-वर्णन कवि को विशेष प्रिय है। अष्टादश सर्ग तथा अन्य नल दमयन्ती-विलास के प्रसंग शृङ्गार-चेष्टाओं के प्रचुर विवरणों से परिपूर्ण हैं, कहीं-कहीं तो इस सीमा तक पहुँच गये हैं कि आधुनिक सामान्य सामाजिक दृष्टि से वे ग्राह्य भी कठिनता से हैं। परन्तु नवदम्पती के जो रति-चित्र इसमें हैं, वे कवि के कामशास्त्र की अभिज्ञता के सटीक उदाहरण हैं।
वस्तुतः कल्पना का अपार विस्तार और उसके अनुरूप नवीन उद्भावनाएं इन वर्णनों में प्रचुरता से उपलब्ध हैं। पर उनमें सरसता भी है और