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________________ ( ३४ ) तो अकल्याणकरी होती ही है; मो यदि रसराज शृंगार के धनी कवि द्वारा वह नहीं कही गयो, तो आश्चर्य नहीं। पापी की प्रतिज्ञा पूर्ण हो, यह श्रीहर्ष का अभीष्ट ही नहीं है । श्रीहर्ष की दृष्टि में कलि 'पाप' था-'कलि: प्राप म्लापयितुं पापः ।' ( १७५१६१ प्रकाश टीका ) । वह बहुत दिनों तक भटकता रहा, पर उसे पैर टिकाने को भी स्थान न मिला-'न प्रसारयितुं काल: कलिा पदमपारयत् ।' (नै० १७५१६३ )। बहुत दिन इधर-उधर भटकने पर उसे स्थान भी मिला तो गृहोद्यान के लांछनभूत 'विभीतक' कुटवृक्ष पर ( ने० १७।२१२ )। वहाँ भी पड़े-पड़े वह राजर्षि नल का कुछ न बिगाड़ पाया और बहुत से वर्ष व्यतीत हो गये थे उसे नल में कोई कलुष नहीं मिल सका'बिभीतकमधिष्ठाय तथा भूतेन तिष्ठता। तेन भीममुवोऽमीक: स राजपिरधषि म ॥ तमालम्वनमासाद्य नैदर्मीनिषधेशयोः। कलुषं कलिरन्विष्यन्नवासीद्वत्सरान् बाहून् ।' (नै ० १७१२१६.२१७) । श्रीहर्ष ने लिखा है-स्फारे तादृशि गरि सेननगरे पुण्यैः प्रजानां धनम् । विघ्नं लपवत श्चिरादुग्नतिस्तस्मिन् किलाभूत्कलेः । रिसेन नल के प्रजाजन के पुण्यों से धर्मबहुल विशाल नगर में, सुना जाता हैकलि बहुत दिनों तक लड़ता रहा (ने० १७।२२१)। 'प्रकाश' कार ने इस पर लिखा है कि कवि ने कलि कलह से उत्पन्न नायक के पराभव वर्णन अवर्णनीय माना, अतः नहीं कहो वह 'पापकथा'-'कलि कर्तृकपराभवस्य भविष्यत्त्वान्नायकापकर्षस्यावर्णनीयत्वाच्च स नोक्तः।' । ____महाकवि श्रीहर्ष रससिद्ध अमर कवि हैं, वे इतिहास या घटनाओं के लेखक मात्र नहीं। घटना वर्णन मात्र से कविपद प्राप्त भी नहीं होता। आनन्दवर्द्धनाचार्य ने स्पष्ट कह दिया है-'न हि कवेरितिवृत्तमात्रनिर्वाहेणात्मपदलामः । श्रीहर्ष 'व्युत्पत्तिमात्र' देने वाले इतिहासकार नहीं थे, जिनके विषय में धनञ्जय ने कहा है :-'आनन्दनिस्पन्दिषु रूपकेषु व्युत्पत्तिमात्रं फलमल्पबुद्धिः । योऽपीतिहासादिवदाह साधुस्तस्मै नमः स्वादुपराङ्मुखाय ॥' ( दशरूपक ११६ ) । महाभारतकार को मांति किसी बृहदश्व मुनि द्वारा विपद्ग्रस्त युधिष्ठिर को 'विपदि धैर्यम्' को शिक्षा देने के लिए कहा गया यह 'नलोपाख्यान' नहीं है, यह 'नैषधीयचरित' 'सहस्रधारकलश श्री' देव को मधुवर्षा से रसिक सुधीजन को 'रसोनिमज्जनसुख' देने वाला शृङ्गारोज्ज्वल महाकाव्य है ।
SR No.009566
Book TitleNaishadhiya Charitam
Original Sutra AuthorHarsh Mahakavi
AuthorSanadhya Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year
Total Pages284
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size74 MB
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