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महाकाव्यम्
अन्वयः - विदुषी सा यान् मूर्द्धनि बिभत्ति ते चिकुरप्रकरा जयन्ति, पशुना अपि अपुरस्कृतेन चापरेण वत्तुलनां कः इच्छतु ?
हिन्दी - बुद्धिमती वह जिन्हें शिरोधार्य किये हैं, वे जयी हैं ( सर्वोत्कृष्ट ) हैं) केश-समूह, पशु ( सुरा गाय ) ने भी जिन्हें पुरस्कृत नहीं किया ( पृष्ठभाग पूँछ में रखा ) उन चमरी-केशों से कौन दमयन्ती की चिकुरराशि की तुलना करना चाहेगा ? ( कोई नहीं । )
टिप्पणी- चमरी के तुलनायोग्य केशों से भी दमयन्ती के चिकुरजाल की श्रेष्ठता प्रमाणित करने का अद्भुत तर्क । मल्लिनाथ के अनुसार पदार्थहेतुक काव्यलिंग अलंकार और विद्याधर के अनुसार अतिशयोक्ति और व्यतिरेक | काकु वक्रोक्ति ॥ २० ॥
स्वदृशोर्जनयन्ति सान्त्वनां खुरकण्डूयनकैतवान्मृगाः । जितयोरुदयत्प्रमीलयोस्तदखर्वेक्षणशोभया भयात् ॥ २१ ॥ जीवातु - स्वदृशोरिति । मृगाः हरिणास्तस्या दमयन्त्या अखर्वयोरायतयोरीक्षणयोरक्ष्णोः शोभया कर्त्या जितयोरत एव भयादुदयत्प्रमीलयो रुत्पद्यमाननिमीलनयोः स्वशोनिजनयनयोः खुरैः शफै: 'शफ क्लीवे खुरः पुमानि त्यमरः । कण्डूयनस्य कर्षणस्य कैतवाच्छलात्सान्त्वनां जनयन्ति लालनां कुर्वन्ति । यथा लोके परपराजिता निमीलिताक्षाः स्वजनैर्मयनिवृत्तये करतलास्फालनादिना परिसान्त्व्यन्ते तद्वदिति भावः । अत्र कैतवशब्देन कण्डूयन - मपह्नुत्य सान्त्वना रोपादपह्नवभेदः ॥ २१ ॥
अन्वयः -- मृगाः तदखर्वेक्षणशोभया जितयोः स्वदृशोः खुरकण्डूयनकैतवात् सान्त्वनां जनयन्ति ।
भयात् उदयत्प्रमीलयोः
विजित हो मय से मूंदे
हिन्दी - हरिण उसके विशाल नेत्रों की शोभा से ये ( तन्द्रा से निमीलित अपने नेत्रों को खुर से खुजाने के व्याज से सांत्वना देते हैं ।
टिप्पणी- हारे व्यक्ति को सहलाकर सांत्वना दी जाती है, सो मृग भी दमयन्ती के विशाल नयनों से पराजित अतएव त्रस्त हो मुंदे नेत्रों को खुर से