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द्वितीयः सर्गः
टिप्पणी- विदर्भ भूमि का स्वामी भीम पराक्रमी शासक है, वह प्रजारंजक भी है, समृद्ध भी है, जिसके सम्मुख इन्द्र और उसकी स्वगं भूमि भी नगण्य है । विद्याधर ने यहाँ अनुप्रास और उपमा अलंकारों का निर्देश किया है, मल्लिनाथ ने असम्बन्ध में सम्बन्ध-कथन के आधार पर अतिशयोक्ति का, चंद्रकलाकार अतिशयोक्ति और अर्थापत्ति की संसृष्टि मानते हैं ।। १६ ।।
दमनादमनाक् प्रसेदुषस्तनयां तथ्यगिरस्तपोधनात् । वरमाप स दिष्टविष्टपत्रितयानन्यसदृग्गुणोदयाम् ॥ १७ ॥
१.३
जीवातु - दमनादिति । स भीमभूपतिरमनागनल्पं प्रसेदुषो निजोपासनया प्रसन्नात् 'भाषायां सदवसश्रुव' इति सर्दोलिटः क्वस्वादेशः । दमनाद्दमनाख्यात् तथ्यगिरः अमोघवचनात् तपोधनाद्यषेः दिष्टानां कालानां विष्टपानां लोकानाञ्च त्रितययोरनन्यसदृशीं गुणोदयां कालत्रये लोकत्रये चानन्यसाधारणप्रकर्षं तनयां दुहितरं वरमाप । वरत्वेन लब्धवानित्यर्थः । ' देवाहते वरः श्रेष्ठे त्रिषु क्लीबे मनाप्रिय' इत्यमरः ॥ १७ ॥
अन्वयः --सः अमनाक् प्रसेदुषः तथ्य गिरः तपोधनात् दमनात् दिष्टविष्टपत्रितयानन्यसद्गुणोदयां तनयां वरम् आप |
हिन्दी -- उस ( मोमभूपति ) ने अत्यन्त प्रसन्न, सत्यवक्ता ( जिनका वचन झूठा न हो ) तपस्वी दमन से कालत्रय ( भूत, भविष्यत्, वर्तमान) और लोकत्रय (स्वर्ग, मर्त्य, पाताल ) में जो असाधारण रूप गुणवती है, ऐसी पुत्री
का वर पाया ।
टिप्पणी- दमयन्ती अनुपम रूप गुणवती है, - यह कह कर नल की उसके प्रति उत्कंठा जागरित करने की चेष्टा । विद्याधर के अनुसार अनुप्रास और व्यतिरेक, चंद्रकलाकार ने केवल 'दमनादमनाक्' के यमक का निर्देश किया है ॥ भुवनत्रयसुभ्रुवामसौ दमयन्ती कमनीयतामदम् ।
उदियाय यतस्तनुश्रिया दमयन्तीति ततोऽभिधां दधी ॥ १८ ॥
जीवातु -- अथास्या नामधेयं व्युत्पादयन्नेवाह-भुवनत्रयेति । असौ वरप्रसादलब्धा तनया कर्त्री तनुश्रिया निजशरीरसौन्दर्येण करणेन भुवनत्रयसुभ्र ुवां त्रैलोक्यसुन्दरीणां कमनीयतामदं सौन्दर्यगवं दमयन्ती अस्तं गमयन्ती दमेर्ण्य