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नैषधमहाकाव्यम्
हिन्दी--यह जो मेरा कथन संभव है विचार करने पर सुन्दर न प्रतीत हो, तथापि सुनना तो उचित ही है, 'यह पक्षी की वाणी है'-इससे भी क्या तोते की वाणी के तुल्य आनन्द न देगी ? ( देगी ही )।
टिप्पणी--भले ही हंस का कथन मीमांसा करने पर महत्त्वपूर्ण न प्रतीत हो, तथापि राजा को इस कारण हो सुन लेना चाहिए कि तोते के समान यह हंस भी मनुष्य की वाणी बोल रहा है। मनुष्य-भाषा बोलते हंस को सुनना अमहत्त्व का होने पर भी एक सुन्दर आश्चर्य की तुष्टि तो करता ही है। उपमा और अनुप्रास ॥ १५ ॥
स जयत्यरिसार्थसार्थकोकृतनामा किल भीमभूपतिः ।। यमवाप्य विदर्भभूः प्रभुं हसति द्यामपि शक्रभर्तृकाम् ॥ १६ ।।
जीवातु-अथ यद्वक्तव्यं तदाह-स इति । अर्थेन अभिधेयेन सह वर्तत इति सार्थकम्, 'तेन सहेति तुल्ययोग' इति बहुव्रीहिः, 'वोपसर्जनस्य'ति सहशब्दस्य विकल्पात् सभावः 'शेषा द्विभाषे'ति कप समासान्तः, ततश्विरभूततद्भावे । अरिसार्थेषु शत्रुसङ्घषु सार्थकीकृतं नाम भीम इत्याख्या येन स तथोक्तः च प्रसिद्धः बिभ्यत्यस्मादिति भीमः ‘भियो म' इत्यपादानार्थे निपातनान्मप्रत्यय औणादिकः, भीम इति भूपतिः नृपः जयति किल सर्वोत्कर्षेण वर्त्तते खलु । विदर्भभूविदर्भदेशः यं भूपति प्रभु भरिमवाप्य शक्रो भर्ता यस्यास्तां शकभर्तृकां 'नवृतश्चे'ति कपि द्यान्दिवमपि हसति, किमुतान्यभर्तृ कदेशानित्यर्थः । स्त्रियो हि भर्तुरुत्कर्षाद्धासं कुर्वन्तीति भावः । अत्र विदर्भभुवोऽपि द्युहासासम्बन्धेऽपि सम्बन्धोक्तेरतिशयोक्तिः ॥ १६ ।।
अन्वयः-अरिसार्थकीकृतनामा सः भोमभूपति। जयति किल, यं प्रभुम् अवाप्य विदर्भभूः शक्रमर्तृकां द्याम् अपि हसति ।।
हिन्दी--शत्रुओं के दल में जिसने ( भयंकर युद्ध करके अपना भीम ) नाम सार्थक कर दिया है, वह भीम-भूपाल सर्वथा जय प्राप्त करे, जिसको स्वामी पाकर विदर्भ की भूमि इन्द्र जिसका स्वामी है, ऐसी स्वर्गभू का भी उपहास करती है।