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प्रथमः सर्गः
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वनों ( जंगल और जल ) के पल्लव और कमलों से युद्ध करने के निमित्त कवच-धारण किये सुशोभित हो रहे थे क्या ?
टिप्पणी-नल उपानह -धारी दोनों चरणों का साम्य क्रमशः वन ( उपवन, जंगल ) के किसलय और वन ( जल ) के रक्तोत्पलों से क्यिा गया है । जूता रूपी कवच धारे वे चरण पल्लव और रक्तोत्पल से युद्धार्थ प्रस्तुत हैं। भाव यह है कि नल के चरण अपने दोनों उपमानों की चुनौती स्वीकार कर उन पर अपनी श्रेष्ठता प्रमाणित करने को उद्यत हैं। विद्याधर के अनुसार यथासंख्य और. उत्प्रेक्षा, जिसे चंद्रकलाकार ने इन दोनों, अलंकारों का अंगांगिमाव संकर कहा है । मल्लिनाथ ने केवल उप्रेत्क्षा का ही उल्लेख किया है ॥१२३॥
विधाय मूर्ति कपटेन वामनी स्वयं बलिध्वंसिविडम्बिनीमयम् । उपेनपावश्चरणेन मौनिना नपः पतङ्गसमधत्त पाणिना ॥ १२४ ।।
जीवातु-विधायेति । अयं नृपः स्वयमेव कपटेन छद्मना वामनी ह्रस्वां गौरादित्वात् ङीप्, बलिध्वंसिविडम्बिनीं कपटवामनविष्णुमूर्त्यनुकारिणीमित्यर्थः, मूर्ति विधाय कायं सङ्कुच्येत्यर्थः । मौनिना निःशब्देन चरणेनोपेतपावः प्राप्तहंसान्तिकः पाणिना पतङ्गं पक्षिणं समवत्त, संघृतवान् जग्राहेत्यर्थः, । स्वभावोक्तिरलङ्कारः ॥ १२४॥
अन्वयः-अयं नप: स्वयं कपटेन बलिध्वंसिविडम्बिनी वामनी मूत्तिं विधाय मौनिना चरणेन उपेतपार्श्वः पाणिना पतङ्ग समघत्त ।
हिन्दी- इस राजा ( नल ) ने स्वयं कपट से बलिराज का ध्वंस करनेवाले विष्णु का अनुसरण करने वाली वामनी--छोटी देह बनाकर ( सिकुड़ते हुए ) निःशब्द चरण धरते हुए समीप पहुँचकर हाथ से उसी प्रकार उस पतंग ( पक्षी हंस ) को हाथ से पकड़लिया, जैसे वामन विष्णु ने अकाशगामी निःशब्द चरण धरते हुए पास पहुँच कर सूर्य को हाथ से छू लिया था।
टिप्पणी-पौराणिक कथा के माध्यम से वामन से राजा नल की तुलना। पक्षी को दबे पर चुपचार पहुँच कर ही पकड़ा जाता है। मल्लिनाथ ने यहाँ स्वभावोक्ति, चंद्रकलाकार ने उपमा स्वभावोक्ति के संकर और विद्याधर ने उपमा और जाति अलङ्कारों का निर्देश किया है ॥१२४॥