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नेपघमहाकाव्यम्
समझ अपने धनुष से दुनिर्गत अर्थात् लक्ष्य से भटके बाण की भ्रांति के कारण कामदेव लजा गया।
टिप्पणी-लक्ष्यभ्रष्टता के कारण काम का भ्रम में पड़ लज्जित होना - इस आधार पर भ्रांति और श्लेषानुप्राणिता उत्प्रेक्षा का संकर ॥९३॥
मरुल्ललत्पल्लवकण्टकैः क्षतं समच्चरच्चन्दनसारसौरभम् । स वारनारीकुचसञ्चितोपमं ददर्श मालूरफलं पचेलिमम् ॥ ९४ ।।
जीवातू-मरुदिति । मरुता वायुना ललत्पल्लवानाञ्चलत्किसलयानां कण्टकस्तीक्ष्णाग्रं रवयवैः क्षतमन्यत्र विलस द्विटनखः क्षतमिति गम्यते, समुच्चरत् परितः प्रसर्पत् चन्दनसारस्येव सौरभं यस्य तत् अतएव वारनारीकुचेन वेश्यास्तनेन सञ्चितोपमं सम्पादितसादृश्यमित्युपमालङ्कारः । 'वारस्त्री गणिका वेश्ये'त्यमरः । कुलाङ्गनानखक्षताद्यनौचित्याद्वारविशेषणं, पचेलिमं स्वतः पक्वं कर्मकर्तरि 'केलिमर उपसंख्यानमिति पचे: केलिमरप्रत्ययः । मालूरफलं बिल्वफलं 'बिल्वे शाण्डिल्यशैलूपी मालूरः श्रीफलावपी'त्यमरः । स नलो ददर्श ।। ९४ ॥
अन्वयः--सः मरुल्ललत्पल्लवकण्टकैः क्षतं समुच्चरच्चन्दनसारसौरमं वारनारीकुचसञ्चितोपमं पचेलिमं मालूर फलं ददर्श ।
हिन्दी--उस ( नल ) ने वायु से झूमते पल्लवों और कांटों से कटे-फटे, चंदन गन्ध से भी श्रेष्ठ सुगंध छलकाते, ( अतएव ) मरुत् देव के समान पल्लव अर्थात् विलासी विट के कांटों के समान तीक्ष्ण नखों (अथवा विलासी के पल्लवसम हाथ के काँटे अर्थात् नखों ) के क्षत-चिह्न से युक्त, चंदन, कपूर आदि की सुगन्ध छलकाते वारांगना के कुच का सादृश्य अजित करनेवाले पके बिल्वफल को देखा। ___ टिप्पणी-बिल्वफल को 'वारनारीकुचसंचितोपम' इस आशय से कहा गया कि कुलनारी के नख क्षतों का प्राकट्य उचित नहीं होता । उपमा अलंकार । युवद्वयोचित्तनिमज्जनोचितप्रसूनशून्येतरगर्भगह्वरम् । स्मरेपुधीकृत्य धिया भियाऽन्धया स पाटलायाः स्तबकं प्रकम्पितः ॥ ९५ ।।