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________________ ४७ प्रथमः सर्गः वयस्कृतेन नवोपहारेण नूतननिर्माणेन उरोभुवा तज्जन्येन कुम्भयुमेन कुचयुगाख्येनेति भावः इत्यतिशयोक्तिः । !न लोके' त्यादिना कृद्योगषष्ठीप्रतिषेधात्कर्त्तरि तृतीया, 'नपुंसके भाव उपसंख्यानमिति षष्ठी तु शेषविवक्षायाम् । जृम्भितं जृम्भणं किमुत्प्रेक्षा सा चोक्तातिशयोतिमूलेक्ति सङ्करः । दमयन्तीकुचकुम्भविश्रयश्रवणान्नलस्त्रपां विहाय तस्यामासक्त चित्तोऽभूदित्यर्थः तेन मनःसङ्ग उक्तः ॥ ४८ ॥ अन्वयः--सा तन्वी त्रपासरिदुर्गम् अपि प्रतीयं यत् नलस्य हृदयं विवेश, ( तत् ) वयस्कृतेन नवोपहारेण कुम्भयुगेन जृम्भितं किम् ? हिन्दी - - वह कृशांगी ( दमयन्ती ) लज्जारूपी नदी में दुगं ( प्रतिरोध ) अथवा लज्जानदी रूपी दुर्गं को भी तर कर जो नल के हृदय में प्रविष्ट हो सकी, वह क्या तारुण्य प्रस्तुत नूतन उपहार कुंभयुग ( दो घड़े और कुचयुगल ) द्वारा हो सका ? टिप्पणी- 'प्रकाश' कार नारायण ने 'नवोपहारेण' का 'नव' नूतन उपसमीपमतो हारो मुक्ताहारो यस्य उपायनं तद्रूपेण' विग्रह में किया है । इस प्रकार अर्थ हुआ 'नवीन मुक्ताहार रूपधारी उपहार से युक्त कुचकलश ।' उन्होंने ‘अत्युच्च' अर्थं मानकर 'जृम्भितं' को 'दुर्ग' का विशेषण भी माना है । प्रणयिजन तारुण्यमद में घड़ों की सहायता से मिलन के निमित्त दुर्गम नदी तैर जाया करते हैं । अनेक प्रणय कथाओं में नर-नारी के ऐसे साहस का वृत्तांत मिलता है | पंजाबी की लोक- प्रसिद्ध प्रणयकथा 'सोनीमहीवाल' की नायिका 'सोनी' भी अपने प्रणयी 'महिवाल' से मिलने इसी प्रकार जाया करती थी । श्रीहर्ष ने यहाँ भी ऐसी ही कल्पना की है, जिससे नल-दमयन्ती की प्रणयोत्कटता प्रकट होती है । यह सब 'यौवन' की ही कृपा है, 'कुचयुगल' भी 'वयः कृत' - यौवन के उपहार हैं । विद्याधर ने इसमें उत्प्रेक्षा, रूपक ओर श्लेश अलंकार माने हैं । मल्लिनाथ ने यहाँ उत्प्रेक्षा- अतिशयोक्ति का संकर माना है ||४८ || अपह्नुवानस्य जनाय यन्निजामधीरतामस्य कृतं मनोभुवा । अबोधि तज्जागरदुःखसाक्षिणी निशा च शय्या च शशाङ्ककोमल ॥४९॥
SR No.009566
Book TitleNaishadhiya Charitam
Original Sutra AuthorHarsh Mahakavi
AuthorSanadhya Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year
Total Pages284
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size74 MB
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