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प्रथमः सर्गः
किया गया) अथवा (और) न अपने मुख को क्रोध के कारण कुटिल (वक्र, विकृत) किया गया । कर देने वाले अधीनस्य राजाओं ( सामन्तों) के द्वारा इस ( दुर्योधन ) के आदेश (आशा) को गुणानुराग से (= उस दुर्योधन के गुणों में अनुरक्त होने के कारण) नत मस्तक होकर (=आदरपूर्वक) स्वीकार किया जाता है जैसे पुष्प-माला को सुगन्ध इत्यादि गुणों के कारण (अथवा सूत्र में गुम्फित होने के कारण) सिर झुकाकर धारण किया जाता है ।
सं० व्या०-अस्मिन् श्लोके कौरवेश्वरस्य दुर्योधनस्य प्रवृद्धःप्रभाकः निरूपितः । अधुना कोऽपि नृतः दुर्योधनत्य प्रतिकूलं नाचरति । सर्वे नृपाः सम्मानपूर्वकं तस्य आदेशं पालयन्ति । यद्यपि दुर्योधनेन कस्मिंश्चिदपि अपकारिणि आरोपितमौर्वीकं धनुर्न उत्थापितं, स्वकीयं मुखं च कदापि क्रोधेन विकृतं न कृतं तथापि सर्वे राजानः तस्य दुर्योधनस्य दयादाक्षिण्यादिगुणैः वशीकृताः तत्य आदेशं तथैव नतशिरोमिः पालयन्ति यथा सुरभिगुगलोभेन जनाः पुष्पमालां नतशिरोमिः धारयन्ति ।
स०-ज्यया सह वर्तते यत् तत् सन्यम् (बहु०)। कोपेन विजिह्ममिति कोपविनिमम् (तृतीया तत्पु०)। नराणाम् अधिपाः नराधिपाः तैः (षष्ठी तत्पु०)। गुणेषु अनुरागः इति गुणानुरागः तेन गुणानुरागेण (सतमी तत्पु०)। ___ व्या०-गुणानुरागेण-में हेतौ तृतीया है । उद्यतम्-उद्+यम्+क्त । उह्यते-वह् + लट् (कर्मवाच्य ), अन्यपुरुष, एकवचन ।।
टि०-(१) इस श्लोक में दुर्योधन के अतिशय प्रभाव का निरूपण किया गया है । कोई भी राजा उसके प्रतिकूल आचरण नहीं करता । कर देने वाले सभी राजा प्रसन्नतापूर्वक उसके आदेश का पालन करते हैं। यद्यपि उसने किसी के विरुद्ध शक्ति का प्रयोग नहीं किया और न उसने किसी के प्रति क्रोध किया तथापि सभी राजा उसके गुणों से प्रभावित होकर उसके आदेश को उसी प्रकार शिरोधार्य करते हैं जैसे लोग सुगन्धित पुष्पों की माला को प्रसन्नतापूर्वक धारण करते हैं। (२) 'माल्यमिव' में उपमा है।
घण्टापथ-नेति । तेन राजा क्वचित् कुत्रापि । सह ज्यया मौया सज्यम् ।