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________________ प्रथमः सर्गः टि०-प्रस्तुत श्लोक में दुर्योधन के धन की वृद्धि का निरूपण किया गया है। दुर्योधन बड़ी तत्परता के साथ प्रजा की रक्षा कर रहा है। उसके राज्य में सर्वत्र शान्ति है। प्रजा में सन्तोष और सुख है। किसी प्रकार का कोई उपद्रका नहीं है। प्रजा के लोग निश्चित होकर प्रभूत धन का उपार्जन करते हैं और प्रजा से दुर्योधन को भी प्रचुर धन प्राप्त होता है। गुप्तचर इस तथ्य की ओर संकेत कर रहा है कि आर्थिक दृष्टि से समृद्ध राष्ट्र को पराजित करना सरल कार्य नहीं होगा। दुर्योधन-को पराजित करने के लिए बड़ा प्रयत्न करना होगा। (२) यहाँ प्रथिवी का वर्णन एक नवप्रसूता और प्रसन्न गौ के रूप में किया गया है । (३) प्रस्तुत (पृथिवी) के वर्णन से अप्रस्तुत (गौ) की प्रतीति होने से यहाँ समासोक्ति अलंकार है । पृथिवी और गौ में भेद होने पर भी अभेद रूप में वर्णन होने से यहाँ अतिशयोक्ति अलंकार भी है। घण्टापथ-उदारेति । उदारकीर्तेः महायशसः । 'उदारो दातृमहतोः' इत्यमरः । दयावतः परदुःखप्रहाणेच्छोः । अतः एव प्रशान्तवा, प्रशमितोपद्रवं यथा स्यात्तथेति क्रियाविशेषणम् उदयविशेषणं वा । 'वादान्तशान्त'-इत्यादिना शमिधातोय॑न्तान्निष्ठान्तो निपातः । अभिरक्षया सर्वतस्त्राणेन उदयं वृद्धिं दिशतः सम्पादयतो वसूपमानस्य कुवेरोपमस्य । 'वसुर्मयूखाग्निधनाधिपेषु' इति विश्वः । अस्य दुर्योधनस्य गुणैर्दयादाक्षिण्यादिभिः उपस्नुता द्राविता मेदिनी वसूनि. धनानि । 'वसु तोये धने मणौ' इति बैजयन्ती। स्वयं प्रदुग्धे । अक्लेशेन वुह्यत इत्यर्थः । दुहेः कर्मकतरि लट् । 'न दुहस्नुनमा यक्चिणौ' इति यकप्रतिषेधः । यथा केनचिद्विदग्धेन नवप्रसूता रक्षिता च गौः स्वयं प्रदुग्धे तद्वदिति भावः । अलङ्कारस्तु-विशेषणमात्रसाम्यादप्रस्तुतस्य गम्यत्व समासोक्तिः' इति सर्वस्वकारः । अत्र प्रतीयमानया गवा संह प्रकृताङ्ग्या मेदिन्या भेदेऽभेदलक्षणातिशयोक्तिवशाहोह्यत्वेनोक्तिरिति सक्षेपः ॥ १८ ॥ महौजसो मानधना धनार्चिता धनुर्भूतः संयति लब्धकीर्तयः। नसंहतास्तस्य न भिन्नवृत्तयः प्रियाणि वाञ्छन्त्यसुभिःसमीहितुम् ।१९। ___ अ०-महौजसः मानधनाः धनाचिताः संयति लब्धकीतेयः न संहताःन भिन्नवृत्तयः धनुर्भूतः असुभिः तस्य प्रियाणि समीहितुं वाञ्छन्ति ।
SR No.009565
Book TitleKiratarjuniyam
Original Sutra AuthorMardi Mahakavi
AuthorVirendrakumar Sharma
PublisherJamuna Pathak Varanasi
Publication Year
Total Pages126
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size83 MB
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