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किरातार्जुनीयम् __ व्या०-सोपधि-विदधति का क्रियाविशेषण है-उप+घी + कि। विदधति-वि+धा+लट् , अन्यपुरुष, बहुवचन ।
टि०-(१) युधिष्ठिर धर्मराज हैं, सत्यवादी हैं। उन्होंने फौरवों के साथ यह संधि की थी कि वे पत्नी और भाइयों के सहित तेरह वर्ष वन में निवास करेंगे। किसी भी परिस्थिति में वे अपनी प्रतिज्ञा भङ्ग नहीं करना चाहते। इस तथ्य को जानती हुई द्रौपदी कह रही है कि राजनीति में ये बातें महत्त्व नहीं रखती हैं। शत्रु निरन्तर अपकार करने में लगे हुए हैं। अतः उसके गथ फपट करना अयुक्त नहीं है। 'शठे शाठय चरेत्' नीति का पालन करना युक्त है। प्रयोजन की सिद्धि पराक्रमी व्यक्तियों का लक्ष्य होता है। निर्बल और असमर्थ व्यक्ति ही प्रतिज्ञा का पालन करते हैं। अतः प्रतिज्ञा का ध्यान न करके राज्य-प्राप्ति के लिए आपको प्रतीकार अवश्य ही करना चाहिए। (२) महाकवि भारवि की राजनीतिविषयक कुशलता का परिचय प्रस्तुत लोक से होता है। प्रस्तुत तथ्य का सर्वोत्तम उदाहरण पाकिस्तान है। युद्ध में पराजित होने पर शक्तिहीन पाकिस्तान तन्धि करने में तनिक भी नहीं हिचकता। किन्तु जब उसे विदेशों से आधुनिक शस्त्रों की प्राप्ति हो जाती है तब अपने लिए अनुकूल समय जानकर वह भारत के ऊपर कोई न कोई दोषारोपण करके सन्धि को भङ्ग कर देता है और भारत के ऊपर धावा बोल देता है । (३) अर्थान्तरन्यास तथा यमक अलंकार । (४)तर्ग के अन्तिम दो या तीन पद्य भिन्न छन्द या छन्दों में रखे जाने चाहिए-इत नियम के निर्वाह के लिए यहाँ पुष्पितामा छन्द है। इतका लक्षण यह हैअयुजि नयुगरेकतो यफारो युजि च नजो जरगाश्च पुष्पिताया। इससे ज्ञात होता है कि इतके विषम (प्रथम और तृतीय) चरणों में दो नगण, एक रगग,
और एक यगण होता है तथा टम (द्वितीय और चतुर्थ) चरणों में एक नगण, दो जगण, एक गुरु होता है। ____घण्टापथ-नेति । परेषु शत्रुषु निकृतिपरेषु निकृतिः परं प्रधानं येषु तेषु तथोक्तेषु अपकारतलरेषु तत्तु भूरिधाम्नो महौजतः प्रतीकारक्षमत्य ते तव समयस्त्रयोदशसंवत्तरान् वने वत्त्यामीत्येवंरूपा संवित् । 'समयाः शपयाचार