________________
प्राप्त होता है वह कहने की वस्तु नहीं, वह तो गूंगे का गुड़ है। गूंगे को गुड़ा का स्वाद तो प्रत्यक्ष ही आया है पर जिसे जिह्वा से नहीं बता सकता। ऐसा . अनुभव इस क्षेत्र में, इस काल में, बालक, जवान, वृद्ध, स्त्री व पुरुष - सभी को घर में रहते हुए भी, हो सकता है। और तो और, पशु के भी हो सकता है, और इस अनुभव के बाद वह पशु भी ज्ञानी कहलाने लगता है, मोक्षमार्गी हो जाता है।
mhamarinivaastangnrarmswininantimahethnishmtandontournamruagra
"अनुभव'' के लिए पुरुषार्थ व धैर्य की अत्यधिक आवश्यकता है। यदि यह धैर्यपूर्वक प्रयत्न करता ही जाए तो अनुभूति को होना ही पड़ेगा। क्योंकि वह स्वाधीन चीज है। बाकी सारी वस्तुओं को प्राप्त करने के लिए तो कर्म का सहभाव अपेक्षित है परन्तु इसमें अभाव चाहिए। जीव का पुरुषार्थ तो ज्ञाता पर जोर देना मात्र है, जाननेपन में अपना सर्वस्व स्थापित करना.मात्र है, अनुभूति हुई कि नहीं, इस पर दृष्टि नहीं रहनी चाहिए।
यह मन बहुत चालाक है, ज्ञातापने से डिगाने के लिए यह विकल्प उठाता है कि तुम्हें तो स्वानुभूति जगानी थी, देखो तो सही हुई कि नहीं? क्यों नहीं । हो पा रही? क्या कारण हैं? यह मन प्रलोभन देने में भी बहुत पक्का है। तुम इसकी सुनना मत, इसकी सुनने बैठे तो विकल्पों में ही ठहर जाओगे और अनुभूति की तो बात ही दूर, ज्ञातापने से भी वंचित रह जाओगे। तुम तो जानने वाले पर ही जोर देने के पुरुषार्थ में संलग्न रहना, एक दिन स्वानुभव तो स्वयमेव ही, अनायास ही, हो जाएगा। तुमने कभी सोचा भी न होगा, कल्पना भी न की होगी कि ऐसा भी कभी हो सकता है।
शरीर पुद्गल है आत्मा चैतन्य है ज्ञानरूप है। दोनो अनादि काल से मिले हुए - हैं। आत्मा ही दोनों की सत्ता अलग-अलग होते हुए, दोनों का अस्तित्व
अलग-अलग होते हुए एकरूप अपने रूप अनुभव कर रहा है। जब दोनों की
(((29)