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जन्म-मरण के दुःखों से छुटकारे का एकमात्र उपाय
स्वानुभव
शुद्ध परमात्मा सर्व कर्म मल रहित मात्र ज्ञाता-दृष्टा (परमात्म अवस्था)
साधक अवस्था आचार्य उपाध्याय सर्वसाधु रूप
(अंतरात्मा)
शरीर पुद्गल पिंड
. अष्ट कर्म ज्ञानावर्णादिक
भाव कर्म रागद्वेषादिक
संसारी आत्मा
(बहिरात्मा मनुष्य तिर्यच सूक्ष्म जिवाणु, देव एवं नारकी अवस्था रूप)
लेखक व संकलनकर्ता : बाबू लाल जैन