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पदार्थ विज्ञान
प्रकार मुझे मिल जाये तो बहुत अच्छा हो । यह रोग वडा भयानक है, प्रभु इससे मेरी रक्षा करे", इस प्रकार पदार्थो में अच्छे-बुरेकी या इष्ट-अनिष्टरूपकी कल्पना करना राग-द्वेष कहलाता है । इष्ट पदार्थको प्राप्तिमे हर्ष और अनिष्ट पदार्थ की प्राप्तिमे दु.ख मानना, यह हर्षविषाद कहलाता है। इसी प्रकार अन्य भी अनेको द्वन्द्व अन्दरमे होते प्रतीत होते हैं। ये सर्व तर्क-वितर्क, संकल्प-विकल्प, इष्टअनिष्ट राग-द्वेष, हर्ष-शोक आदि द्वन्द्व जिसमे उत्पन्न होते हैं उसे मन' कहते हैं।
वुद्धि, चित्त, अहकार व मन इन चारोको सग्रह कर देनेपर एक अन्त करण कहा जाता है। यह अन्त करण वास्तवमे शुद्ध चेतन नहीं है, परन्तु चेतनरूप दीखता है, क्योकि उपर्युक्त सर्व प्रकारकी विचारणाएँ ज्ञानात्मक हैं। ज्ञानमे-से ये सब प्रकारकी विचारणाएं हट जानेपर जो शेष रहता है उसे चेतन कहते हैं। वह केवल साक्षी-भाव मात्र या ज्ञाता-द्रष्टा होता है। ‘पदार्थ है' बस इतना जानना ही उसका काम है। वह अच्छा है कि बुरा, मेरा है कि तेरा, इत्यादि कल्पनाएँ ज्ञाता-द्रष्टा भावमे नही हुआ करती। 'वह कौन है ?' इस प्रकारकी विचारणायें भी वहाँ नही होती। वह सहज प्रकाशरूप होता है।
अन्त करण स्वयं द्वन्द्व रूप है इसलिए इसे चेतन नही कह सकते हैं। इसे जड भी नहीं कह सकते क्योकि यह जानता-देखता तो है ही, भले किसी रूपसे भी जाने-देखे। इसलिए इसे चेतन न कहकर चिदाभास कहना उपयुक्त है। या ऐसा कह लीजिए, कि यह है तो जड़, पर इसपर चेतनका प्रतिबिम्ब पड़ रहा है।
१. प्रयोजन-विशेषके कारण यहां मनका ग्रहण शास्त्र-प्रमिद्ध अर्थमें न
करके लोक-प्रसिद्ध अर्थमें किया गया है ।