________________
६६
पदार्थ विज्ञान
है और अन्त करण ही चेतन है" ऐसा प्रतीत होता है । परन्तु वास्तवमे ये दोनो पृथक्-पृथक् तत्त्व हैं. जिनको अत्यन्त सूक्ष्म दृष्टि ही देख सकती हैं । उस दृष्टिके अभावके कारण आप लोग उस भेदका प्रत्यक्ष सम्भवत न कर सकें । फिर भी स्थूल रूपसे उस अन्तकरणका परिचय यहाँ दे देना आवश्यक समझता हूँ, ताकि आगे प्रकरणोमे जहाँ कही इस शब्द का प्रयोग करनेमें आवे वहाँ आप मेरा अभिप्राय समझ सकें। जब आप स्थूल रूपसे यह पदार्थविज्ञान पढ तथा सीख जायेंगे, तव आपमे सूक्ष्म रूपसे भी पढने की योग्यता आ जायेगी, और उस समय आपको वह सूक्ष्म रहस्य भी बता दिया जायेगा ।
अन्तःकरण कहते है जीवनके अन्तरंग रूपको । यह वास्तवमे चेतनका सूक्ष्म शरीर है जो ज्ञानकी विचित्रताओके रूपमे प्रतीत होता है । इसका विश्लेषण करनेपर इसे चार भागोमे विभाजित ' किया जा सकता है - १. सारासारका विचार करके अन्तरगमे वस्तुको जानना तथा पहचानना, २. धन, कुटुम्ब तथा शरीरादिमे अपनेपनेकी प्रतीति करना, ३ किसी भी बातका निर्णय करनेके लिए चिन्तवन करना या दुख-सुखका वेदन करना, ४ अनुमान ज्ञानके तर्क-वितर्क, सकल्प-विकल्प, इष्टता अनिष्टता तथा रागद्वेष आदि द्वन्द्व करना । बाह्य जीवनके भी चार अग हैं - १. शरीर, २. शारीरिक सुख-दुख, ३ घन- कुटुम्बादि, ४. इन्द्रिजन्य बाह्य ज्ञान । अन्तरग जीवनके उक्त चार भागोको ही पृथक्-पृथक् नामोसे कहा जाता है | वे नाम हैं-बुद्धि, अहंकार, चित्त व मन ।
किसी भी पदार्थके सम्बन्धमे विचार करके तत्सम्बन्धी कुछ निर्णय तथा निश्चय करने रूप जो कार्य अन्दरमे किया जाता है उसे बुद्धि कहते हैं । " यह दूर दिखाई देनेवाला व्यक्ति कौन है ?" । ऐसा विचार करनेपर आपको जिसके द्वारा यह निश्चय होता है