________________
४ जीव पदार्थ सामान्य स्थिरता ही ज्ञानका आनन्द है। इसलिए उस ज्ञान प्रकाशको आनन्दमय कहा गया है। इस प्रकार चेतनका जो 'निर्विकल्प तथा निर्द्वन्द्व आनन्दमय ज्ञान प्रकाश' मात्र लक्षण किया गया है सो ठीक ही है।
मैं समझता हूँ कि इस प्रकार उसकी महिमाका वर्णन करनेसे आपकी बुद्धि चक्करमे पड गयी है, अत. इस प्रारम्भिक दशामे आप इस चक्करमे न पड़ें, केवल अन्त करणको ही जाननेका प्रयत्न करें । इसको ठीक प्रकारसे पढनेका अभ्यास हो जानेके पश्चात् आप उपर्युक्त सूक्ष्मताओको भी स्पर्श करनेके योग्य हो जाओगे। यही कारण है कि पहलेसे अन्त करणको चेतन कहता चला आ रहा हूँ। वास्तवमे अन्तःकरण चेतन नही बल्कि चिदाभास है अर्थात् चेतन सरीखा दोखता है। जिस प्रकार दर्पणमे पडे हुए व्यक्तिके प्रतिबिम्बको ही 'यह अमुक व्यक्ति है' ऐसा कह दिया जाता है, इसी प्रकार अन्तःकरणमे पडे हुए चेतनाके प्रतिबिम्बको ही 'यह चेतन है! ऐसा कह दिया जाता है। वास्तवमे चेतन वह है जिसका कि प्रतिबिम्ब पड़ रहा है, जिसके कारण कि संकल्प-विकल्प भी चेतनवत् प्रतीत होते है, और वही ज्ञान-प्रकाश मात्र चेतनका लक्षण है। ५ अन्त.करणका स्वरूप
चेतन पदार्थ बहुत सूक्ष्म तथा विचित्र है। बडे-बडे जानी इसको जाननेमे भूल खा जाते हैं। कारण यह है कि विल्कुल चेतनवत् दोखनेवाला एक अन्त करण नामका दूसरा भी पदार्थ है जो चेतनका सूक्ष्म शरीर है। चेतन तथा अन्त करण दोनो दूधपानीकी तरह मिलकर ही ससारमे रह रहे है और ऐसे ही सबकी प्रतीति मे आ रहे है । न वे दोनो पृथक्-पृथक् दृष्टिगत होते है और न उन्हे कोई पृथक-पृथक् करके जानता है । "चेतन ही अन्त करण