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पदार्थ विज्ञान
वह सब अन्त करणका था इतना समझ लीजिए। भले ही निकलकर जाता हुआ दिखाई न देता हो परन्तु निकलकर लुप्त हो जानेवाली शक्तियां तो ध्यानमे है ही। बस उतना कुछ ही चेतनका स्वरूप है।
हम देखते है कि चमडे-हड्डी का ढांचा मात्र पडा है, जिसमे कुछ रूप एवं रग है, कुछ स्वाद एव गन्ध है, तथा कोमल कठोर आदि कुछ स्पर्श है। बस इतने कुछ ही इस शरीरके गुण है। क्योकि यही सर्व गुण मिट्टीमे पाये जाते हैं इसलिए कहा जा सकता है कि शरीर वही पृथ्वी तत्त्व है, जिसमे रूप, रस, गन्ध व स्पर्श पाये जाते हैं, इसके अतिरिक्त कुछ नही। दूसरी ओर अन्त करण या चेतन तत्त्व है, जिसमे जानना, देखना, विचारना तथा महसूस करना आदि गुण पाये जाते हैं, क्योकि ये सर्व शक्तियाँ शरीरमे-से लुप्त हो गयी है। ___ अत. सिद्धान्त बन गया कि जो जाने-देखे सो चेतन और जो जान-देख न सके सो अचेतन। चेतनको जीव कहते हैं और अचेतन को जड़ । अन्त.करण चेतन है और शरीर जड़। अन्तःकरण हो जीता है शरीर नही। इसलिए अन्तरग जीवन ही वास्तविक जीवन है, यह जीवन नही । सुख या शान्तिका सम्बन्ध उस अन्तरग जीवनसे ही है बाह्य जीवनसे नही क्योकि उसमे महसूस करनेकी शक्ति नही। अन्तरंग जीवनको हम चेतन या जीव कहा करेंगे और बाह्य जीवनको जड या अजीव । इस चेतन पदार्थका ही विस्तृत स्वरूप दर्शाता हूँ। ४. चेतनका वास्तविक स्वरूप
इन्द्रिय व शरीरकी तो बात नही, वास्तवमे चेतन तो मन तथा वुद्धिके भी परे है अर्थात् विकल्पो व विचारणाओसे भी उसका