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४ जीव पदार्थ सामान्य
हुआ
देखती है, उसी प्रकार आँख नही देखती पर उसके पीछे बैठा तू ही देखता है । भले ही चश्मेके बिना आँख न देख सके पर इसपर से यह नही कहा जा सकता कि चश्मा देखता है, इसी प्रकार भले ही आँखके बिना तू न देख सके पर इसपर से यह नही कहा जा सकता कि आँख देखती है । इसी प्रकार सर्व इन्द्रियोके सम्बन्धमे निश्चित करके आज में तेरी तू मुझे छोडकर न जा । मैं तेरे जिसे चितामे रखकर फूँक तत्व है ।
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शरणमे आया हूँ । बिना मुर्दा हूँ । केवल मिट्टी हू, दिया जायेगा । तू ही वास्तविक
अब तू ही बता कि चेतन कौन है— शरीर या अन्त करण ? अब तू ही निर्णय कर कि ये दोनो एक हैं कि दो ? भेया । जो कुछ इस मिट्टोके ढेरमे-से निकल गया है, जिसके रहनेपर ही ये हाथ-पांव हिलते थे, जिसके रहनेपर हो जिह्वा चलती तथा वोलती थी, जिसके रहनेपर ही नाक-कान सूंघते तथा सुनते थे और जिसके रहनेपर ही यह आँख देखती थी, वही अन्त करण है, वही चेतन है, वही वास्तविक तत्त्व है । वही जानने, देखने तथा महसूस करनेवाला है । आज वह अपनी समस्त शक्तियोको समेटकर इसमे से निकल गया और शरीर अकेला पडा रह गया । अत यह सिद्ध है कि शरीर तथा अन्त करण एक नही दो है ।
३ शरीर जड तथा जीव चेतन
अव यहाँ सिद्धान्त निकाल लीजिए कि शरीर किसे कहते है और इसमे क्या-क्या गुण हैं, तथा अन्त करण किसे कहते हैं और इसमे क्या-क्या गुण हैं । अग्नि की उष्णतावत् गुण सदा पदार्थके साथ रहते है, इसलिए जो तथा जितना कुछ इस मुर्दा हालत मे शरीर के साथ रहा दिखाई देता है, वह तथा उतना मात्र ही शरीरका स्वरूप है, तथा जो व जितना इसमे से लुप्त हो गया है