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पदार्थ विज्ञान
हुए कही इन पदार्थोंका नाम आने पर उलझ न जायें । आगे अजीव पदार्थका विस्तार करते हुए किसी प्रकार इन्हे सिद्ध भी किया जायेगा । परन्तु यहाँ तो इतना मात्र समझो कि ये तीनो जीव तथा पुद्गल लिए मात्र सहायक होते हैं । धर्म पदार्थ इन दोनो को गमन करनेमे अदृष्ट रहकर सहायता देता है और अधर्म द्रव्य उन्हे ठहरनेमे सहायता देता है । इसी प्रकार सर्व ही पदार्थोके परिवर्तन करनेमे काल द्रव्य सहायता करता है । ये ही उनके मुख्य लक्षण या गुण हैं ।
९ जीव प्रजीवका नाटक
इस प्रकार सिद्ध हुआ कि लोकमे दो जातिके पदार्थ हैं - एक चेतन और दूसरा जड़ । चेतनसे अन्त करण या अन्तरंग जीवनका निर्माण होता है और जडसे शरीरका । इन दोनोका सयोग ही विश्वकी समस्त व्यवस्था करता है । ये दोनो मिल-जुलकर एकमेक भी हो जाते हैं और बिछुड़ भी जाते हैं। यह नाटक है जिसके रहस्यको भौतिक जगत् समझ नही सकता । यही वह प्रपच तथा माया है जिसमे वह उलझा हुआ है । वास्तवमे यह सर्व प्रपंच अनित्य है, असत्य है, तदपि मानव इसे सत् मानकर इसके पीछे दौड रहा है ।
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इस रहस्य को समझनेके लिए भौतिक विज्ञानकी नही अध्यात्म विज्ञानकी आवश्यकता है, जो अत्यन्त सूक्ष्म होनेके कारण केवल विचारणाका विषय है । इसे व्यर्थ समझकर मत छोड़ें, क्योकि यह एक विज्ञान है, और विज्ञान कभी व्यर्थ नही हुआ करता । धर्मका सम्बन्ध इसी विज्ञानसे है, क्योकि जैसा कि पहले बताया जा चुका है, धर्म नाम सुख तथा शान्तिका है और उसका निवास चेतनमे है, शरोरमे नही ।