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३ पदार्थ विशेष
१०. पदर्थों को जानने का प्रयोजन
इन सब पदार्थोको बतानेका प्रयोजन यहाँ आपको भौतिक विज्ञान पढाना नही है क्योकि यह विषय अध्यात्म विज्ञानके अन्तर्गत आया है। आत्मकल्याण अर्थात् सुख व शान्ति की प्राप्ति ही एकमात्र इसे जाननेका प्रयोजन है सो कैसे ? यदि आप यह जान जायें कि ये सब दृष्ट जगत् तथा ये शरीर, कुटुम्ब, धन आदि पदार्थ अनित्य हैं, प्रपच है, यदि आप यह जान जायें कि जन्मसे मरण पर्यन्त कर्तव्य-अकर्तव्यको भूलकर सदा अन्याय तथा अनर्थ मे वर्तन करते हुए भी क्यो आपके हाथ चिन्ताओके अतिरिक्त कुछ नही आता, मृत्युके समय क्यो सब कुछ यहाँ ही रह जाता है, यदि यह सब आपका है तो आपके साथ ही क्यो नही जाता-इत्यादि, तो आपकी प्रवृत्तिमे अन्तर पड़ जाये, आपको सन्तोप आ जाये, और आपके सर्व व्यवहार सत्य तथा न्यायपूर्वक होने लगें।
भैया | यह सब दृष्ट प्रपच माया जाल है, जिसमे समस्त ससार उलझकर अपनी चेतन सत्ताको भूल बैठा है। यही कारण है कि जीवनमे सर्व उपर्युक्त समस्याएँ तथा अधर्म चले आ रहे है । आप पदार्थ के स्वभावको नही जानते, आप मूल पदार्थ को देखनेका प्रयत्न नही करते, आप सत्को देखनेका प्रयत्न नही करते, केवल बाहरमे ही जो कुछ देखने व जाननेमे आता है उसे ही सत् मान बैठते हैं और इसीलिए उसके पीछे दौड चले जा रहे हैं। हाथ क्या आना हे ? बालू मथनेका परिश्रम करके भो मक्खन कौन प्राप्त कर सकता है ? यदि आप यह जान जाये कि यह सर्व माया तथा प्रपच है, विनाशिक तथा असत् है तो इसके पीछे आपकी जो व्यर्थ दौड़ हो रही है वह छूट जाये । तब बजाय असत्के आप सत्की खोज करें और उसीको प्राप्त करनेका प्रयत्न करें। वह क्योकि नित्य है, इसलिए एक बार हाथ आकर फिर विनष्ट न होगा,