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३ पदार्थ विशेष अमूर्तिक अजीव पदार्थ चार है-धर्म, अधर्म, काल तथा आकाश। यहाँ धर्म-अधर्मका अर्थ पुण्य-पाप न समझना। यहाँ ये शब्द एक विशेष जातिके पदार्थों के नाम है। इसी प्रकार कालका अर्थ घण्टा, मिनट आदि न समझना, यह भी एक विशेष प्रकारका पदार्थ है। आकाश खाली स्थानको कहते है। ये ऊपर जो नीलानीला दीखता है वह आकाश नही क्योकि आँखोसे दिखाई देनेके कारण वह मूर्तिक है। आकाश अमूर्तिक है। यह जो अपने चारो ओर ऊपर तथा नीचे खाली स्थान पडा है, जिसमे कि आप चलते, फिरते तथा रहते है, और अन्य वस्तुओको उठाते धरते हैं, जिसमे कि वायुयान अथवा स्पुत्निक दौडते फिरते हैं, जिसमे कि यह पृथिवी तथा चन्द्र-सूर्य आदि यथास्थान टिके हुए हैं उसे आकाश कहते है। आधुनिक भाषामे इसे स्पेस (space) कहते है। यह तोडा-फोडा या काटा-छाँटा नही जा सकता। न ही अग्नि आदिसे जलाया या गलाया जा सकता है, क्योकि अमूर्तिक है। इसीलिए यह नित्य है और सत् है । यह अत्यन्त व्यापक तथा महान है, क्योकि जहाँ कही भी दृष्टि फैलाकर देखो, और कुछ दिखाई दे या न दे आकाश तो वहाँ है हो। यह सर्व ही जीव तथा पुद्गलोको अपने भीतर टिकने तथा रहनेके लिए स्थान देता है । यही इसका मुख्य लक्षण अथवा गुण है।
धर्म, अधर्म तथा काल ये तीनो भी अमूर्तिक पदार्थ हैं, इसीलिए हमे दिखाई नही देते । आकाशके ही साथ एकमेक होकर पडे हैं । अकाश तो अमूर्तिक होनेपर भी अपने चारो तरफ देखकर प्रतीतिमे आ जाता है, पर ये तीनो तो किसी प्रकार भी प्रतीतिमे नही आ सकते । इसलिए साधारणत. इनकी सत्ता पर विश्वास होना कठिन पडता है। परन्तु शास्त्रोमे इनका उल्लेख है, अतः इनका भी नाम व लक्षण जान लेना योग्य है, ताकि शास्त्र पढते