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३ पदार्थ विशेष
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जीवोके उपर्युक्त भेदोको गोरसे देखनेपर पता चलता है कि जीवोके शरीर छह प्रकारके हैं-पृथिवी, जल, अग्नि, वायु, वनस्पति तथा अस। पृथिवी आदि पांचो प्रकारके स्थावर जीवोके शरीर अर्थात् पृथिवी, जल, अग्नि, वायु व वनस्पति पाँचो ही जडवत् दीखनेवाले पदार्थ भिन्न जाति तथा स्वभाव- वाले हैं और भिन्नभिन्न प्रयोगमे आते हैं। परन्तु कीडेसे लेकर मनुष्य पर्यन्त सभी त्रस जीवोके शरीर एक ही जाति तथा स्वभाव वाले है, क्योकि सभी रक्त मास आदिके बने हुए हैं। इसलिए काय या शरीरकी अपेक्षा जीवोके छह भेद हैं-पांच स्थावर और एक त्रस ।
अच्छे तथा बुरे कर्मों के फलस्वरूप दुख-सुख आदि भोगनेकी अपेक्षा जीवोको चार गतियोमे विभाजित किया गया है-नरक, तियंच, मनुष्य व देव । मनुष्योको छोडकर समस्त स्थावर तथा त्रस जीव तिर्यच गतिके कहलाते हैं। मनुष्य जीव मनुष्य गातिके है। ये दोनो गतियां तो सर्व प्रत्यक्ष हैं, परन्तु इनके अतिरिक्त भी जीवोकी दो गतियाँ और है-नरक और देव। ये दोनो क्योकि हमारे प्रत्यक्ष नही हैं, इसलिए इनपर विश्वास करना कठिन पडता है, परन्तु आगे इनकी सिद्धि कर दी जायेगी। नरक गतिके जीवोम प्रचुर दुख होता है । तियंचगतिमे यद्यपि दु ख है परन्तु नरकसे फिर भी कम । मनुष्योमे दुख व सुख दोनो हैं, परन्तु देवोमे प्रचुर सुख ही होता है। इस प्रकार गतिकी अपेक्षा जीव चार प्रकारके होते हैं।
__इन सभी जीवोमे कुछ स्थलचर अर्थात् पृथिवीपर चलनेवाले हैं, कुछ जलचर अर्थात् जलमे रहनेवाले है और कुछ नभचर अर्थात् आकाशमे उड़नेवाले है। इस प्रकार भी जीवोके तीन भेद किये जा सकते है। सर्व प्रकारके जीवोमे कुछ तो बडे हैं जो हमे