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३ पदार्थ विशेष
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न्द्रिय, पचेन्द्रिय- असज्ञी, पंचेन्द्रिय सज्ञी । जिनके पास केवल एक स्पर्शन इन्द्रिय हो वे एकेन्द्रिय जीव हैं जैसे- वृक्ष । जिनके पास स्पर्शन व जिह्वा ये दो इन्द्रियाँ हो वे द्वीन्द्रिय जीव है जैसे—लट, जोक आदि । जिनके पास स्पर्शन, रसना व घ्राण ये तीन इन्द्रियाँ हो वे त्रीन्द्रिय जीव हैं जैसे-चीटी, कानखजूरा, बिच्छू आदि । जिनके पास इन तीन के अतिरिक्त चौथी आंख भी हो वे चतुरिन्द्रिय जीव हैं जैसे - मक्खी, भँवरा आदि। जिनके पास मनके अतिरिक्त सर्व इन्द्रियाँ हो उन्हें असज्ञी पचेन्द्रिय कहते है, जैसे -- कुछ विशेष प्रकार के सर्प तथा मछली आदि । जिनके पास मनसहित सकल इन्द्रियाँ हो वे सज्ञी पचेन्द्रिय जीव हे जैसे - मनुष्य, पशु, पक्षी आदि ।
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प्रकृतिजात स्वभावके
अन्य दर्शनका रोने सकल्प-विकल्पस्वरूप अन्तरग शक्तिको मन माना है, परन्तु जैन दर्शनमे मनका लक्षण कुछ अन्य ही है । इसीलिए यहाँ जीवके सज्ञी और असज्ञी ऐसे दो भेद हो जाने उचित हैं, जो अन्य दर्शनोमे नही पाये जाते अतिरिक्त देख-सुनकर कुछ अन्य बात भी सीख लॅ, जीवकी ऐसी शक्तिको यहाँ मन कहा जाता है । भले ही सकल्प-विकल्प की शक्ति सभी जीवोमे सामान्य रूपसे पायी जाये, परन्तु नयी बात सीख लेनेकी शक्ति सभी जीवोमे नही पायी जाती । मनुष्य, घोडा आदि पशु, तोता आदि पक्षी जिस प्रकार सिखाने तथा पढानेपर नयी-नयी बातें सीख पढ जाते हैं, चीटी - मक्खी आदि उस प्रकार सीख-पढ नही सकते। जिन जीवोमे इस प्रकार की शक्ति पायी जाती है उन्हें ही यहाँ सज्ञी अर्थात् समनस्क कहा गया है, और जिनमे यह शक्ति नही पायी जाती व असज्ञी अर्थात् अमनस्क कहे गये हैं । केन्द्रियसे चतुरिन्द्रिय तक वाले जीवोमे यह शक्ति सर्वथा नही पायी जाती, इसलिए वे सभी असज्ञी है । पचेन्द्रियोमे यद्यपि प्राय यह शक्ति पायी जाती है, परन्तु कुछ विशेष जातिके सर्प तथा