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११ काल पदार्थ
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अपना ग्रास बनाया करता है । काल भयकर नहीं प्रत्युत सुन्दर है, क्योकि यदि यह अखिल सृष्टि परिवर्तनशील न होती अर्थात् स्तब्ध होती तो सुन्दर भी न होती । परिवर्तन हो इसका सोन्दर्य है और वह कालका ही अनुग्रह है । ज्ञानी जीव इससे भय नही खाते । वे इसके भयसे मुक्त हैं, क्योकि वे जगप्रपचको पहलेसे ही असत् अर्थात् न हुएके बराबर जानकर उसमे फँसते नही हैं ।
२ काल क्या है
परन्तु वह काल क्या बला है, जिसके कारण जगत्मे इतना आतक छाया हुआ है । भाई । वह काल अन्य कुछ नही बल्कि पदार्थों की पर्यायोमे नित्य होनेवाला परिवर्तन ही उसका लक्षण है । वह स्वाभाविक है, इसलिए रोका नही जा सकता । पदार्थमे दो प्रकारके परिवर्तन बताये गये है- एक भावात्मक परिवर्तन अर्थात् उसके अन्दर ही अन्दर होनेवाला गुणोका परिवर्तन और दूसरा क्षेत्रात्मक परिवर्तन अर्थात् उसके आकारका या प्रदेशोका अथवा जीव व पुद्गलका स्थानसे स्थानान्तर जाने रूप परिवर्तन । दोनो ही प्रकारके परिवर्तके लिए कोई न कोई सहायक पदार्थ होने चाहिएँ । तहाँ क्षेत्रात्मक परिवर्तनके लिए तीन पदार्थ सहायक पड़ते है -- आकाश, धर्म तथा अधर्म । आकाश द्रव्य पदार्थोंको अवगाहन देने मे अर्थात् प्रदेशोको एक दूसरेमे समानेमे सहायक है, धर्म द्रव्य उनके प्रदेशोको बाहर निकलनेमे तथा भीतर प्रवेश पानेमे और उन द्रव्योको एक स्थानसे दूसरे स्थानपर गमन करनेमे सहायक है । इसी प्रकार अधर्मं द्रव्य उनके प्रदेशोको मुड़नेमे तथा द्रव्योको चलते-चलते रुकनेमे सहायक है ।
अव प्रश्न यह होता है कि भावात्मक परिवर्तनमे कौन सहायक है ? बस उसीका नाम काल द्रव्य है । जिस प्रकार अदृष्ट होनेके
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