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૧૧ काल पदार्थ
१ कालकी विचित्रता, २ काल क्या है, ३ कालका आकार, ४ कालका गुण, ५ कालके भेद तथा सिद्धि, ६ काल चक्र, ७ समय विभाग, ८ कालके स्वभाव-चतुष्टय, ९ कालको जाननेका प्रयोजन ।
१. कालकी विचित्रता
विचित्र है जगत्की लीला। सब कुछ परिवर्तनशील है यहाँ, जो आज हे वह काल नहीं। एक नाटक मात्र है, माया है, प्रपच है, आभास है, मिथ्या है, असत् है। मोही जीव इसमे उलझते हैं और ज्ञानी जीव इसे देखते ही नहीं। इस सब तमाशेका कारण क्या है ? यह ढूँढने जायें तो भय लगता है, यह देखकर कि सभी कालके गालमे बैठे हुए है-क्या चेतन और क्या जड़। कालका व्यापक शरीर तथा उसकी भयकर दाढो मे व पंजोमे फंसा यह जगत्का प्रपच वास्तवमे न हुए के बराबर है, क्योकि जो कालका चवेना है उसका क्या भरोसा।
परन्तु वास्तवमे ऐसा नहीं है, काल भयकर नही है। मोही जीव ही इसे भयकर देखते हैं। वास्तवमे यह साम्य है, निष्पक्ष रूपसे सदा अपना काम किया करता है। इसकी दृष्टिमे जड-चेतन, रक-राव, वालक-वृद्ध, स्त्री-पुरुषका कोई भेद नही । यह वरावर अपना काम करता हुआ जगत्के प्रत्येक पदार्थको वारी-बारीसे