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१० धर्म-अधर्म पदार्थ
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आज इन पदार्थों को सिद्ध करनेमे हमे अधिक परिश्रम नही करना पडेगा क्योकि आजके विज्ञानने भी किसी न किसी रूपमे इसे स्वीकार किया है । यद्यपि पहले वे इसे स्वीकार नही करते थे, परन्तु उनके सामने यह समस्या आई कि खाली पोलाहट (Space) या आकाशमे से यह सूर्यको किरण अथवा रेडियोकी विद्युत्-तरंगें अथवा चुम्बक शक्तियाँ किस आधारपर गुज़र सकती हैं, जबकि वहाँ वायु ही नही है । तब उन्हे यह स्वीकार करना पड़ा कि कोई न कोई एक ऐसा अदृष्ट पदार्थ अवश्य होना चाहिए, जिसके आधारपर कि इन सबका गमनागमन सम्भव हो सके, और उस पदार्थका नाम उन्होने इथर ( Eather) रखा । यह इथर पदार्थ ही हमारा 'धर्मं- द्रव्य' है ।
यद्यपि विज्ञानने अधर्मके स्थानपर कोई पृथक् पदार्थ स्वीकार नही किया है, परन्तु युक्ति कहती है कि वह होना ही चाहिए क्योकि यदि गमन करनेके लिए किसी सहायक पदार्थकी आवश्यकता है तो उसे ठहरनेके लिए भी सहायककी आवश्यकता अवश्य है । बस ठहरनेमे सहायक होनेवाले उस द्रव्यका नाम ही 'अधर्मद्रव्य' है ।
६. धर्म-अधर्मके स्वगाव-चतुष्टय
अन्य पदार्थोंकी भांति इन दोनोका भी स्वभाव-चतुष्टय द्वारा विश्लेषण करके देखना चाहिए । द्रव्यकी अपेक्षा विचार करनेपर धर्म तथा अधर्म ये दोनो द्रव्य सामान्य रूपसे पृथक्-पृथक् एक-एक है, इनके कोई भी भेद नही हैं । क्षेत्रकी अपेक्षा विचार करनेपर ये पृथक्-पृथक् सामान्य रूपसे लोकाकाशके आकार प्रमाण असंख्यात प्रदेशी हैं । कालकी अपेक्षा विचार करनेपर ये दोनो ही नित्य हैं । और भावकी अपेक्षा विचार करनेपर ये अमूर्तिक पदार्थ हैं, जिनका कार्य केवल जीव तथा पुद्गलके गमनागमनमे सहायक होना है ।
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