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पदार्थ विज्ञान अनन्त अलौकिक ज्ञान, केवलदर्शनरूप अनन्त निर्विकल्प विपयातीत दर्शन, ज्ञानानन्द रूप अनन्त अलौकिक सुख, ज्ञानानन्दमे स्थिरतारूप अनन्त अलौकिक वीर्य तथा उस सम्बन्धी अनन्त अलौकिक अनुभव, श्रद्धा व रुचि प्रकट हो जाते हैं। इन्हे ही भगवान्के अनन्तचतुष्टय कहते हैं । ये कहने मात्रको ही पृथक्-पृथक् हैं, वास्तवमे सब ज्ञान मात्र हैं। इसीलिए इनके साथ 'केवल' विशेषण दिया गया है। ऐसा केवलज्ञान ही चेतनका गुण है। इसी बातको यो कह लीजिए कि निरावरण तथा स्वाभाविक सर्व गुण चेतनके है और शेष सब अन्त करणके हैं।
उस ज्ञानका स्वरूप ही क्योकि विश्वरूप है, इसलिए भले ही उसको विश्वका ज्ञाता या सर्वज्ञ कह लिया जाये, परन्तु वास्तवमें तो वह ज्ञानका ही ज्ञायक है, क्योकि जिस प्रकार हम बाहरमे इस विश्वको देखते हैं उस प्रकार भगवान् बाहरमे नही देखते । वे सदा सर्वत्र जो कुछ भी जानते तथा देखते हैं भीतर ही जानतेदेखते हैं। जिस प्रकार दर्पणको देखनेवाला दर्पणको ही देखता है, उन पदार्थोंको नही जिनके प्रतिबिम्ब कि उसमे पड़ रहे हैं, उसी प्रकार ज्ञानको देखनेवाला ज्ञानको ही देखता है, उन पदार्थोको नही जिनके प्रतिबिम्ब कि उसमे पड़ रहे हैं। इसलिए उसे ज्ञानमात्र या केवलज्ञान, केवलदर्शन आदि कहा गया है। केवल विशेषण लगाकर ज्ञान, दर्शन आदि कहो या ज्ञानमात्र कहो एक ही अर्थ है। वह मात्र प्रकाशरूप है, जो सर्वव्यापक है, नित्य उद्योतरूप है, जिस प्रकार कि सूर्यका प्रकाश । यही व्यापक नित्य ज्ञानप्रकाश चेतनका गुण है। २७. अन्त करणके गुण
मिली हुई वस्तुमे से एक वस्तु तथा उसके गुण निकाल लेनेपर जो शेष रह जाये वह सब उस दूसरी वस्तुका जानना चाहिए।