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५ भोप पदापं विशेष
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मनुप्प नवम रूप, बल व प्रकृति आदि के अन्तरसे महान भेद पाया जाता है। एक-एक देशके मनुष्य भी उत्तरी व पश्चिमी आदि दिशाओ में रहनेवालोको अपेक्षा अथवा जगलो तथा नगर-ग्रामोमे वसनेवालोकी अपेक्षा, म्लेच्छ व आर्य आदि अनेको जातियोमे विभाजित हैं। म्लेच्छ भी यवन, पुलिन्द, कोल, भील आदि अनेको प्रकारके माने जाते है । आर्य भी ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र नादि अनेको प्रकारके हैं। आगे ब्राह्मण, वेश्य आदि भी अनेको जातियो तथा प्रकृतियो मे विभाजित है । इसी प्रकार नारकी तथा देव भी अनेक-अनेक प्रकार के हैं।
इन सब भेद-प्रभेदोमे-से सम्भवत हमने हजारवां भाग भी नही देखा है, और न ही इस भवमे देखनेकी आशा है। अत. अपने देखने मात्रपर सन्तुष्ट नहीं होना चाहिए । जीवोकी सृष्टि बहुत चित्रविचित्र है । आगम ही इसका ठीक प्रमाण है। उपर्युक्त सभी भेदप्रभेद मिलकर कुल चौरासी लाख होते हैं। इन्हे ही जीवोकी चीरासी लाख योनियां कहा जाता है । भारतके सभी दर्शनकारोने ये चौरासी लाख योनियां स्वीकार की हैं। १४. जीवोंका उत्पत्ति क्रम
इन चौरासी लाख योनियोके चित्र-विचित्र जीव विभिन्न प्रकागेसे उत्पन्न होते हैं । इस लिए यहाँ सक्षेपमे जोवोको उत्पत्तिके सम्बन्धमे भी कुछ बता देना चाहिए। जीवो का जन्म तीन प्रकार से होता है--सम्मूच्छिम, गर्भज तथा उपपादज । बिना माता-पिताके संयोगके जो जीव स्यय इधर-उधरके परमाणुओके सम्मेलसे पैदा हो जाते हैं उन्हे समूच्छिम कहते है, जैसे--गायका गोबर तथा गधेका मूत्र मिलनेसे बिच्छू पैदा हो जाते हैं। बरसातके मौसममे घास-फूसकी भांति अनेको विकलत्रय मच्छर, गिजाई, इन्द्रगोफ