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पदार्थ विज्ञान आदि तथा पचेन्द्रिय मेढक आदि स्वत उत्पन्न हो जाते है । वीज, मिट्टी तथा जलके सयोगसे जो वनस्पति उत्पन्न होती है वह भी सम्मूच्छिम ही है । इसे अमैथुनिक सृष्टि कहते हैं । वैदिक दर्शनकार विकलेन्द्रिय सूक्ष्म सृष्टिको स्वेदज और वीजसे उत्पन्न होनेवाली वनस्पतिको उद्भिज्ज कहते हैं। एकेन्द्रियसे चतुरेन्द्रिय पर्यन्त तकके सभी जीवोको जैन दर्शन सम्मूच्छिम मानता है । पचेन्द्रियोमे भी मेढक आदि कुछ जीव इसी जातिके हैं, क्योकि इन जीवोमे माता-पिताका भेद नही पाया जाता।
दूसरे प्रकारके जीव गर्भज हैं। माता-पिताके सयोगसे अर्थात् माताके उदरमे स्थित गर्भाशयमे माताका रज और पिताका वीर्य मिल जानेसे जिन जीवोकी उत्पत्ति होती है, वे गर्भज कहलाते हैं। गाय, घोडा आदि पशु, तोता, चिडिया आदि पक्षी तथा मनुष्य सब इसी जातिके हैं। गर्भज जीव कुछ काल पर्यन्त माताके गर्भमें रहकर ही वृद्धिको पाते हैं और नियत काल पश्चात् जब उनका शरीर पूरा हो जाता है तो योनि-द्वारसे बाहर निकलकर इस पृथिवीपर रहते हुए वृद्धिको पाते है । शिशु, बालक, युवा, प्रौढ वृद्ध आदि अनेक अवस्थाओमे से गुजरते हुए आयु पूर्ण होनेपर मृत्युको प्राप्त होते है। गर्भज जीव भी तीन प्रकारके होते हैंअण्डज, जरायुज तथा पोतज । अन्डेसे उत्पन्न होनेवाले अण्डज कहलाते हैं जैसे चिडिया, तोता, सपं आदि । जेर या जरायु अर्थात् झिल्लीमे लिपटे हुए होनेवाले जरायुज कहलाते हैं जैसे-गाय, घोड़ा, मनुष्य आदि। उत्पन्न होनेके पश्चात् इनकी झिल्ली फट जाती है और उसके भीतरसे जीव बाहर निकल आता है। पोतज जीव कुछ विशेष प्रकारके होते है जो न अण्डमे उत्पत्र होते है न झिल्लीमे । बल्कि गर्भसे निकलते ही भागने-दौडने लगते हैं जैसे मृगका बच्चा।