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पदार्थ विज्ञान
जातिवी हैं, कुछ धान्य जातिकी है, कुछ वैक्टेरिया जातिकी है, कुछ फल-फूल जातिकी हैं । कुछ रस देनेवाली हैं, कुछ स्वास्थ्यको लाभदायक हैं, कुछ हानिकारक हैं । कुछ पशुओ के खानेकी हैं, और कुछ पशुओ व मनुष्योके खानेकी है। कुछ जड़ी बूटियो तथा मसालोंके रूपवाली हैं। उसमे से एक-एक भिन्न-भिन्न देशमे उत्पन्न होनेके कारण, तथा भिन्न-भिन्न प्रकृतिको रखनेके कारण पृथक् पृथक् जातियो की हो जाती है जिन सबका गिनाया जाना कठिन है।
द्वीन्द्रिय जीव अर्थात् रेंगकर चलनेवाले कीडे, जोक, अन्नमे पड़ जानेवाली लट, विष्टाका कीडा आदि कितने प्रकारके हैं, सो प्रभु ही जानते है । इसी प्रकार त्रीन्द्रिय जीव अर्थात् दीमक, चीटी, गिजाई, इन्द्रगोप, बिच्छू, कानखजूरा आदि कितने प्रकारके हैं, यह कहा नहीं जा सकता। उनमे भी विच्छू आदि एक-एक ही भेद कितने प्रकारके हैं-कोई बड़ा, कोई छोटा, कोई पहाडी, कोई मैदानी, कोई रेगिस्तानी, कोई कम विषैला, कोई अधिक विषैला, कोई काला, कोई ब्राउन । इसी प्रकार चतुरेन्द्रिय जीव-मक्खी, मच्छर, भिर्र, ततैया, भंवरा, मधु-मक्षिका आदि कितने प्रकारके हैं यह भी कौन गिना सकता है। वहाँ भी मक्खी आदिके एक-एक भेद अनेक-अनेक प्रकारके हैं क्योकि पहाडी मक्खी, मैदानी मक्खी, रेगिस्तानी मक्खी आदिकी लम्बाई-चौडाई, रंग-रूप, विष व प्रकृति आदिमे बडा भेद पाया जाता है।
पचेन्द्रियोमे गाय, बैल, घोड़ा, गधा, कुत्ता, बकरी, हिरण, सिंह, रीछ आदि पशु कितने प्रकारके हैं, तोता मैना कबूतर आदि पक्षी कितने प्रकारके हैं जलमे पाये जानेवाले मछली, कछुआ, सागरके बडे मच्छ, सागरका घोडा, सागरका भैसा आदि सागरके कितने प्रकारके प्राणी हैं, इसका अनुमान भी नहीं लगाया जा सकता। मनुष्योमे भी भारतका मनुष्य, यूरोपका मनुष्य, चीन या जापानका