________________
चौरानवे
कुंदकुंद-भारती
गाथा
पृष्ठ
गाथा
पृष्ठ
२९७
शिवकुमार मुनिका दृष्टांत ५१ २९३ भव्यसेन मुनिका दृष्टांत ५२ २९३ शिवभूति मुनिका दृष्टांत ५३ २९३ भावसे ही नग्न मुनिकी सार्थकता है .
५४-५५ २९३ भावलिंगी साधुका लक्षण ५६ २९३ भावलिंगी साधुके विचार ५७-५९ २९३-२९४ अविनाशी सुखके लिए आत्मभावना आवश्यक है ६०-६१ २९४ ज्ञानस्वभावी जीव ही कर्मक्षय करता है
६२-६३ २९४ आत्माका लक्षण पाँच प्रकारकी ज्ञानभावना करनेकी प्रेरणा
६५ भावरहित पढ़नेसे क्या होता है ६६ मात्र द्रव्य नग्न रहनेसे लाभ नहीं है
६७ २९५ जिनभावनाके बिना मात्र नग्नत्व दुःखका कारण है
६८-६९ २९५ भावदोषसे रहित होकर जिनलिंग धारण करनेका उपदेश नट श्रमणका वर्णन रागरूप परिग्रहसे युक्त मुनि समाधि और बोधिको प्राप्त नहीं करते
२९६ पहले भावनग्न होनेका उपदेश ७३ २९६ भावही स्वर्गमोक्ष आदिका कारण है
७४-७५ २९६ तीन प्रकारके भावोंका वर्णन ७६-७७ २९६ भावादि कषायोंसे रहित ही त्रिलोकश्रेष्ठ रत्नत्रयको प्राप्त होता है
७८ विषयविरक्त साधु ही तीर्थंकर प्रकृतिका बंध करता है ७९ २९७ मनरूपी मत्त हाथीको वश
करनेका उपदेश निर्मल जिनलिंगका वर्णन
२९७ जिनधर्मकी श्रेष्ठताका वर्णन पुण्य और धर्मका विश्लेषण पुण्य भोगका ही कारण है, कर्मक्षयका नहीं
८४ आत्मस्वरूपमें लीन रहनेवाला ही संसारसे पार होता है ८५ आत्मश्रद्धान आदिकी उपयोगिता ८६-८७ २९८ अशुद्ध भावके कारण शालिसिक्थ मच्छ सातवें नरक गया ८८ २९८ भावरहित मुनिका बाह्य त्याग व्यर्थ है
८९ २९८ भावशुद्धि किस प्रकार प्राप्त होती है?
९०-९९ २९८-३०० भावश्रमण ही कल्याणपरंपराको प्राप्त होते हैं
१०० ३०० दृषिक आहारादि करनेके कारण तिर्यंच गतिके दुःख उठाये हैं १०१-१०३ ३०० पाँच प्रकारके विनयको धारण करनेका उपदेश
१०४ ३०० दश प्रकारके वैयावृत्त्य करनेका उपदेश दोषोंकी आलोचना करनेका उपदेश
१०६ ३०१ क्षमा धारण करनेका उपदेश १०७-११० ३०१ अंतरंगकी शुद्धिपूर्वक द्रव्यलिंग धारण करनेका उपदेश १११ ३०१ आहारादि संज्ञाओंसे मोहित हुआ जीव भववनमें भटकता है ११२ ३०२ पूजालाभ आदिकी चाह न रखकर ही उत्तरगुणोंके पालन करनेका उपदेश
११३ ३०२ तत्त्वोंके चिंतन करनेका उपदेश ११४-११५ ३०२ परिणामसे ही पाप और पुण्य होते हैं
११६ ३०२
७२
हाताह